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कविता पुरानी / राकेश खंडेलवाल

No change in size, 13:25, 17 अप्रैल 2008
गुनगुनाती रागिनी से रंग सा भरती दुपहरी<br>
लाज के सिन्दूर में डूबी हुई दुल्हन प्रतीची<br>
और रजनी चाँदनी चांदनी की ओढ़कर चूनर रुपहरी<br><br>
भोर की अँगड़ाईयों से हो रहा नभ आसमानी<br>