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"बाज़ार / मुइसेर येनिया" के अवतरणों में अंतर

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अपनी त्वचा लपेटते हुए
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हमारे दुखों से घिरे हुए बाज़ार से बाहर ।
 
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01:22, 6 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण

आह क्या जगह है
जहाँ ईश्वर
पके फल की तरह
ज़मीन पर गिरा
और बिखर गया !

चलो चलते हैं
रेशम के कपड़े की तरह
अपनी त्वचा लपेटते हुए
हमारे दुखों से घिरे हुए बाज़ार से बाहर ।