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|रचनाकार=शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
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<poem>
एक दूजे के अंग लगें तो होली है
सबको लेकर संग चलें तो होली है
 
बच्चे तो शैतानी करते रहते हैं
बूढ़े भी हुड़दंग करें तो होली है
 
औरों को तो रोज परेशां करते हैं
अपनों को ही तंग करें तो होली है
 
चलते रहते रोज अजीवित वाहन पर
गर्धव का सत्संग करें तो होली है
 
बनते हैं पकवान सभी त्यौहारों पर
हर गुझिया में भंग भरें तो होली है
 
घोर विषमता भरे कष्टकर जीवन में
मुसकाने का ढ़ंग करें तो होली है
 
नारिशील पर मर्यादा की सील लगी
वही शील को भंग करें तो होली है
 
बच्चे बूढ़े प्रेम करें तो जायज है
इसी काम को यंग करें तो होली है
</poem>