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"तुम्हें नहीं तो किसे और / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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तुम, ओ एक, निःसंग, अकेले, <br> | तुम, ओ एक, निःसंग, अकेले, <br> | ||
मानव, <br> | मानव, <br> | ||
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16:19, 31 मार्च 2008 का अवतरण
तुम्हें नहीं तो किसे और
मैं दूँ
अपने को
(जो भी मैं हूँ)?
तुम जिस ने तोड़ा है
मेरे हर झूठे सपने को—
जिस ने बेपनाह
मुझे झंझोड़ा है
जाग-जाग कर
तकने को
आग-सी नंगी, निर्ममत्व
औ' दुस्सह
सच्चाई को—
सदा आँच में तपने को—
तुम, ओ एक, निःसंग, अकेले,
मानव,
तुम को—मेरे भाई को!