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"दूर है मंजिल राहें मुश्किल आलम है तनहाई का / शकील बँदायूनी" के अवतरणों में अंतर

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दूर है मंजिल राहें मुश्किल आलम है तनहाई का
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आज मुझे एहसास हुआ है अपनी शिकस्तापाई का
  
दूर है मंजिल राहें मुश्किल आलम है तनहाई का<br>
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देख के मुझ को दुनिया वाले कहने लगे हैं दीवाना
आज मुझे एहसास हुआ है अपनी शिकस्तापाई का<br><br>
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आज वहाँ है इश्क़ जहाँ कुछ ख़ौफ़ नहीं रुसवाई का  
  
देख के मुझ को दुनिया वाले कहने लगे हैं दीवाना<br>
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छोड़ दें रस्म-ए-ख़ुदनिगरी को तोड़ दें अपना ईमाँ
आज वहाँ है इश्क़ जहाँ कुछ ख़ौफ़ नहीं रुसवाई का <br><br>
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ख़त्म किये देता है ज़ालिम रूप तेरी अंगड़ाई का
  
छोड़ दें रस्म-ए-ख़ुदनिगरी को तोड़ दें अपना ईमाँ<br>
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मैं ने ज़िया हुस्न को बख़्शी उस का तो कोई ज़िक्र नहीं
ख़त्म किये देता है ज़ालिम रूप तेरी अंगड़ाई का<br><br>
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लेकिन घर घर में चर्चा है आज तेरी रानाई का
  
मैं ने ज़िया हुस्न को बख़्शी उस का तो कोई ज़िक्र नहीं<br>
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अहल-ए-हवस अब घबराते हैं डूब के बेहर-ए-ग़म में "शकील"  
लेकिन घर घर में चर्चा है आज तेरी रानाई का<br><br>
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पहले न था बेचारों को अंदाज़ा गहराई का
 
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अहल-ए-हवस अब घबराते हैं डूब के बेहर-ए-ग़म में "शकील" <br>
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पहले न था बेचारों को अंदाज़ा गहराई का<br><br>
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14:01, 20 अप्रैल 2016 के समय का अवतरण

 
दूर है मंजिल राहें मुश्किल आलम है तनहाई का
आज मुझे एहसास हुआ है अपनी शिकस्तापाई का

देख के मुझ को दुनिया वाले कहने लगे हैं दीवाना
आज वहाँ है इश्क़ जहाँ कुछ ख़ौफ़ नहीं रुसवाई का

छोड़ दें रस्म-ए-ख़ुदनिगरी को तोड़ दें अपना ईमाँ
ख़त्म किये देता है ज़ालिम रूप तेरी अंगड़ाई का

मैं ने ज़िया हुस्न को बख़्शी उस का तो कोई ज़िक्र नहीं
लेकिन घर घर में चर्चा है आज तेरी रानाई का

अहल-ए-हवस अब घबराते हैं डूब के बेहर-ए-ग़म में "शकील"
पहले न था बेचारों को अंदाज़ा गहराई का