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"आकाश / वंशी माहेश्वरी" के अवतरणों में अंतर

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00:27, 23 फ़रवरी 2008 के समय का अवतरण

प्रकृति
आँख उठा कर
आकाश निहारती है

आकाशत्व में लीन आकाश
अपने नीले सपनों में
असीम दुनिया जीता है।

प्रकृति
गहरी पीड़ा की विह्वलता
स्मृतियों में फैलाकर
अपनी थकी आँखों में
लौट आती है।

मृत्यु की परिक्रमा
लगाता आकाश
प्रकृति के बिल्कुल पास आकर
अपने असह्य
अहसासों को छोड़ जाता है।