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"प्रतीक्षा / अपर्णा अनेकवर्णा" के अवतरणों में अंतर

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कितने ही सितारे टाँके..
 
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ख़ुशफ़हमियों की रातों में..
 
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कि रौशन रहें ये राहें तुम्हारी..
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पर तमन्नाएँ भी सुर्खाब हुआ करती हैं
 
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अपनी मर्ज़ी से परवाज़ हुआ करती हैं..
 
अपनी मर्ज़ी से परवाज़ हुआ करती हैं..

11:22, 8 जून 2016 के समय का अवतरण

अब.. बदहवास हो..
परतें उधेड़ने लगी हूँ ज़हन की..
हर परत के भीतर..
तुम्हारे होने की आहटें हैं मौजूद..
बस एक तुम ही नज़र नहीं आते...

तुम्हारे होने की एक
उड़ती-सी ख़बर है मुझको
जब भी ख़ुद को आवाज़ें लगाईं हैं
सब ओर से जब भी लौटीं वो बारहा
तुम्हारी ही हो कर लौटी हर बार..

कितने ही सितारे टाँके..
ख़ुशफ़हमियों की रातों में..
कि रोशन रहें ये राहें तुम्हारी..
पर तमन्नाएँ भी सुर्खाब हुआ करती हैं
अपनी मर्ज़ी से परवाज़ हुआ करती हैं..

दियाले पे जलता है हरदम..
तुमसे तुमको ही माँगता हुआ...
तुम्हारे नाम का चराग़
मेरे अन्धेरों को रोशन करता
मेरे हौसलों को उजाला देता

इन बिखरीं परतों को समेटूँ, चलूँ..
ठहर गई ज़िन्दगी की ख़बर लूँ..
तुम तो फुर्सतों के मालिक ठहरे
जब आओगे.. तब ही आओगे...
आसमानों में रहने वाले..
भला तुम कब आओगे..