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|रचनाकार=शैलेन्द्र चौहान
}}
 
== '''पहाड़ के नीचे''' ==
 
मालवा की काली माटी
कल था विंध्याचल
   == '''समय सांप्रदायिक''' ==
यदि बड़ी उर्वर ज़मीन थी वह
मन भी रेगिस्तान हुआ
== '''छवि खो गई जो ''' ==
हो गई रात
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