"संघर्ष / घटोत्कच / अमरेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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22:27, 7 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
कर्ण-फौज में मचलै हुर-हुर
भागै छै मूसें रं फुर-फुर
कोय रथ के पीछू नुकियाबै
कोय भागी केॅ जान बचाबै।
कोय बेंगे रं दै छलांग छै
कोस-कोस पर पड़ै टांग छै
धक्कम-धुक्की, ठेलम-ठेला
फौज करै भूतोॅ के खेला।
फरसा, भाला छोड़ी-छाड़ी
नुकलोॅ छै रथ के पिछुआड़ी
पिछुआड़ी सें हुलकै सबठो
पिछुवैलोॅ सब, हट्टो-हट्टो।
कोय हाथी तर नुकियैलोॅ छै
बुझी घटोत्कचµजम ऐलोॅ छै
ई देखी कर्णो घबड़ैलै
घटोत्कच के नगीच ऐलै।
तानी लेलकै तीस तीर केॅ
मारै लेॅ ऊ असुर वीर केॅ
पूत हिडिम्बा रोॅ गोस्साबै
रत्थे पर सें मोंछ पिजाबै।
कर्ण-तीर तेॅ लागै होना
पर पकड़ी लै दोसरोॅ कोना
हिलडुल करै नै वीर जरो टा
आखिर छिकै हिडिम्बा बेटा।
कर्ण कहाँ ओकरा सें कम छै
एक रसुनिया, दूसरोॅ बम छै
तानी लेलकै तीर तीस केेॅ
काटी देलकै एन्हैं बीस केॅ।
ई देखी कौरव-दल गदगद
मारे खुशी गिरै छै भदभद
पिछुवाड़ी सें निकली-निकली
फुर-फुर उड़ै; जों, टुकनी-तितली।
कोय घटोत्कच बाँही मोचरै
कोय ओकरोॅ देहे केॅ खोखरै
कोय तेॅ जाय केॅ मूंछ उखाड़ै
कोय चमड़ा के कुत्र्ता फाड़ै।
कोय टाँगोॅ सें लटकी झूलै
कोय ओकरोॅ कंधे पर बूलै
राकस लेॅ सब खोटा-पिपरी
बच्चा वास्तें; जों, तरऊपरी।
तभिये ऐलै वहाँ अलायुध
देखी उड़लै सब्भे के बुध
दोनो मनराचल रं भारी
बक्कै छै अनसेधरोॅ गारी।
घटोत्कच पाण्डव के दिश सें
भरलोॅ जादू-टोला, विष सें
अन्धड़-आगिन, जेकरोॅ साथी
मूड़िये लगै; जों, बड़का हाथी।
अलायुधो होने छै; कम नै
हाथ मिलाय लौ, केकरौ दम नै
ऐलोॅ छै कौरव के दिस सें
भरलोॅ छै सौ-सौ मन खिस सें।
ऐथैं देलकै हेनोॅ घुस्सा
घटोत्कच के बड़लै गुस्सा
भिड़लै दोनों दू पहाड़ रं
झूमै दोनों खड़ा ताड़ रं।
गुर्राबै दोनों बाघे रं
आँख दिखाबै छै आगे रं
कोय फरसा, कोय गदा दिखाबै
कोय लुढ़कै, तेॅ कोय ठिठियाबै।
एक-दूसरा पर गदा उछालै
रही-रही मुडघुनियाँ चालै
दै छलांग हनुमाने नाँखी
दूर तलक दै आबै हांकी।
फेनू दौड़लोॅ पहिलोॅ आबै
पीछुवे पीछू लंग्घी लगाबै
खाय केॅ लंग्घी गिरै धड़ाम
माथोॅ पर दै गदा भड़ाम ।
एक उखाड़ी लेलकै बोेॅर
दूसरां पीपर सहिते जोॅड़
दीएॅ लागलै धांय-धांय-धांय
बजड़ै छै पथरे रं; ठांय।
दोनों भीतरे-भीतर दंग
चलतै सालो भर के जंग
एक्कें सोचै, दौं पटकनियां
दूसरें दै दै छै पेटकुनियां।
तभिये चललै चाल घटोत्कच
तोड़ेॅ लागलै हड्डी, कचकच
ई देखी कौरव-दल गुमसुम
हुन्नें चुतड़े पर छै धुमधुम।
उछलै-कूदै पाण्डव सेना
हाथ में बुनिया, मुँह में छेना
कौरव-दल के मुँह छै कस्सोॅ
ठोर-जीया पर लस्सोॅ-लस्सोॅ।