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ताड़ काटूँ तरकुन काटूँ काटूँ रे वनखाजा
घोल्टू के जे बाबू गेलै, आबेॅॅ तेॅ दू बरखा भेलै
जब, सें शहरोॅ मेॅ गेलोॅॅ छै, चिट्ठी एक्को नै देलोॅॅ छै
हेनोॅ की निठुराई अच्छा, नौकरी संे सें तेॅ भलोॅ भिच्छा
सूनोॅ -सूनोॅ घोॅॅर लगै छै, मन मेॅ सौ फोड़ा टहकै छै
घर-धंधा मेॅ की मोॅन की लागतै, रात कटै छै हमरोॅ जागतै
गाँमोॅ में की जी लागै छै, मन व्याकुल जेना दागै छै
लिक्खोॅ की कहिया आबै छोॅ, आरो हमरा लै जावै छोॅ
अबकी तेॅॅ हरगिज नै भुलयोॅµ भुलयोॅ- लुंगा-चोली-साया ।
</poem>
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