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जाँच-पड़ताल / महमूद दरवेश

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|रचनाकार=महमूद दरवेश|अनुवादक=अनिल जनविजय|संग्रह=
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{{KKCatKavita}}लिखो--<poem>लिखो —
मैं एक अरब हूँ
 कार्ड नम्बर-- पचास हज़ार 
आठ बच्चों का बाप हूँ
 
नौवाँ अगली गर्मियों में आएगा
 
क्या तुम नाराज़ हो?
 लिखो--
एक अरब हूँ मैं
 पत्थर तोड़ता हैहूँ
अपने साथी मज़दूरों के साथ
 
हाँ, मैं तोड़ता हूँ पत्थर
 
अपने बच्चों को देने के लिए
 
एक टुकड़ा रोटी
 
और एक क़िताब
अपने आठ बच्चों के लिए
 मैं तुमसे भीख नहीं मांगतामाँगता
घिघियाता-रिरियाता नहीं तुम्हारे सामने
 
तुम नाराज़ हो क्या?
 लिखो--
अरब हूँ मैं एक
 
उपाधि-रहित एक नाम
 
इस उन्मत्त विश्व में अटल हूँ
मेरी जड़ें गहरी हैं
 
युगों के पार
 
समय के पार तक
 
मैं धरती का पुत्र हूँ
 
विनीत किसानों में से एक
 सरकंडे सरकण्डे और मिट्टी के बने झोंपड़े में रहते रहता हूँ बाल-- काले हैं आँखे-- भूरी 
मेरी अरबी पगड़ी
 
जिसमें हाथ डालकर खुजलाता हूँ
 
पसन्द करता हूँ
 
सिर पर लगाना चूल्लू भर तेल
 
इन सब बातों के ऊपर
 कृपा करके यह भी लिखो--
मैं किसी से घृणा नहीं करता
 
लूटता नहीं किसी को
 
लेकिन जब भूखा होता हूँ मैं
 
खाना चाहता हूँ गोश्त अपने लुटेरों का
सावधान
 
सावधान मेरी भूख से
 
सावधान
मेरे क्रोध से सावधान
मेरे क्रोध '''अँग्रेज़ी से सावधानअनुवाद : अनिल जनविजय'''</poem>
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