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दुर्दशा दत्तापुर / प्रेमघन

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यथा समय अरु ठौर एक उनमें प्रधान बनि॥१८॥
औरन की सुधि सहज भुलावत हिय हुलसावत।
सब जग चिन्ता चूर मूर करि दूर बहावत॥१९॥
मन बहलावनि विशद बतकही होत परस्पर।
जब कबहूँ मिलि सुजन सुहृद सहचर अरु अनुचर॥२०॥
समालोचना आनन्द प्रद समय ठांव की।
होत जबै, सुधि आवति तब प्रिय वही गाँव की॥२१॥
 
जहँ बीते दिन अपने बहुधा बालकपन के।
जहँ के सहज सबै विनोद हे मोहन मन के॥२२॥
 
 
यह ग्राम प्रेमघन जी के पूर्वजों का निवासस्थान था और प्रेमघन जी भी इसी ग्राम में १९१२ बैक्रमीय में उत्पन्न हुए थे। इस ग्राम की प्राचीन विभूति तथा आधुनिक दशा का इसमें यथार्थ चित्रण है।
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