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{{KKRachna
|रचनाकार=अचल भारतीअनिमेष कुमार
|अनुवादक=
}}
आरो वहोॅ पारोॅ मेॅ छै
है तेॅ चारो दिस छै
है तेॅ सबरोॅ साथोॅ मेॅ छैमतरकि केकरा फुर्सत छैजिनगी रोॅ है सच्चाई जानवोॅजौनें मनोॅ केॅ काबू मेॅ करि लेलकों तेॅ समझोॅ, जिनगी रोॅ,संतसंग जानी गेलोॅआरोॅ आपनोॅ केॅ चिन्ही गेलैमतरकि है, मोॅन ऐतना आसानी सेॅ मानै वाला नै छै?मनोॅ रोॅ भीतरी मेॅ, हलचल उठतै रहै छैआरोॅ जिनगी केॅ कत्त्तेॅ-कत्त्तेॅ हसीनसपना देखाय छै।
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