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हेरेर चोट देखिन्न नदुख्ने ठाउँ कमै छ | हेरेर चोट देखिन्न नदुख्ने ठाउँ कमै छ | ||
तर म भन्छु सञ्चै छ, सञ्चै छ ! | तर म भन्छु सञ्चै छ, सञ्चै छ ! | ||
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20:27, 23 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण
खोलीले बग्न छाडे नि बगरको छाती चिसै छ
सम्झना गहिरो आँखैमा, मनमा पीर उस्तै छ
तर म भन्छु बेसै छ, बेसै छ !
तिमीले दियौ तिर्सना अधूरो एउटा सपना
भन्न त भनेँ बिर्सिन्छु सकिनँ मैले बिर्सन
लुकेको मर्म उस्तै छ, दुःखेको घाउ उस्तै छ
कमलो मेरो मुटुलाई सहनुपर्ने निकै छ
तर म भन्छु ठीकै छ, ठीकै छ !
नभोगी दुःख बुझिन्न आँसुले पीर धोइन्न
मनैले एक्लो भए त भीडमा खुसी भइन्न
तिर्खाले आँत जल्दै छ, उमेर त्यसै ढल्दै छ
हेरेर चोट देखिन्न नदुख्ने ठाउँ कमै छ
तर म भन्छु सञ्चै छ, सञ्चै छ !