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रोपी होली बहिनीले आँगनमा सयपत्री | रोपी होली बहिनीले आँगनमा सयपत्री | ||
बिस्र्यो भनी रोर्ई होली मैले सम्झेँ कतिकति ! | बिस्र्यो भनी रोर्ई होली मैले सम्झेँ कतिकति ! | ||
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20:27, 23 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण
दसैँ सम्झेँ, तिहार सम्झेँ, सम्झेँ अरू चाडहरू
नाघ्नै गाह्रो भयो मलाई अग्लाअग्ला पहाडहरू !
रातिसम्म भए पनि आउँछ कि भन्दाभन्दै
भाग्यो होला खुसी त्यसै सँधै औँला गन्दागन्दै
लायौ होला सबैलाई खानेकुरो भागवण्डा
सानो रै’छ संसार यो आमा तिम्रो मायाभन्दा !
गाउँभरि रङ्गीचङ्गी खेले होलान् देउसी भैलो
यसपालि त फेरूँ भन्थे चौबन्दीको धूलोमैलो
रोपी होली बहिनीले आँगनमा सयपत्री
बिस्र्यो भनी रोर्ई होली मैले सम्झेँ कतिकति !