Changes

भय / मोहन राणा

2 bytes added, 04:58, 28 अप्रैल 2008
 
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|संग्रह=पत्थर हो जाएगी नदीं / मोहन राणा
}}
 
भय
 
लताओं से लिपटे पुराने पेड़
 
गहरी छायाओं में सोया है जंगल
 
मेरी बढ़ती हुई धड़कन में
 
सहमा है रक्त
 
उत्तेजना में देखता हूँ
 
छुपे हुए चेहरों को
 
उतरते हुए मुखौटों को
 
छनती हुई रोशनी के आर पार
 
जो पहुँच जाती है मेरी जड़ों में भी,
 
क्यों चला आया मैं यहाँ
 
अकेले ही
 
जो नहीं था उसे
 
ले आया यहाँ
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,379
edits