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जिस तरह मैं भटका / रंजीत वर्मा

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|रचनाकार=रंजीत वर्मा
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एक ऐसे समय में
मैंने तुम्हारा साथ दिया
जब समय
मेरा साथ नहीं दे रहा था
वे हो सकते हैं
उत्तेजक और अमीर
लेकिन जिस तरह मैं भटका
मिलने को तुमसे पूरी उम्र
भटक कर दिखाएं वे
एक पूरा दिन भी
 
एक ऐसे समय में
जब प्रेम करना
मूर्खता माना जा रहा था
और अदालतें खिलाफ में
फैसले सुना रही थीं
प्रेमिकाएं
अपने वादों से मुकर रही थीं
और प्रेमी पंखे से झूल रहे थे
मैंने प्रेम किया तुमसे
तमाम खतरों के भीतर से गुजरते हुए
मैंने तुम्हे दिल दिया
जब तुम्हे खुद अपना दिल
संभालना मुश्किल हो रहा था
 
तुम्हारे सांवले रंग में
गहराती शाम का झुटपुटा होता था हमेशा
एक रहस्य गढ़ता हुआ
मैं एक पेड़ की तरह होता था जहां
अंधेरे में खोता हुआ
 
एक ऐसे समय में
ज्ब आगे बढ़ने के करतब
कौशल माने जा रहे थे
बादलों की तरह भटकता रहा मैं
मिलने को तुमसे पूरी उम्र
भटककर दिखाएं वे मेरी तरह
एक पूरा दिन भी।
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