भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दीप और मैं / श्वेता राय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्वेता राय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGee...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatGeet}} | {{KKCatGeet}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | मैं दीये की वो बाती हूँ जिसको जल के है बुझ जाना। | |
− | + | किरण डूबती जब सँझा को | |
− | + | तब जगती मेरी तरुणाई | |
− | + | खुद हो जाती छिन्न भिन्न मैं | |
− | + | करता जब अँधियार लड़ाई | |
− | + | शर्वरी के गहरे साये में तय है एकाकी जल जाना | |
− | + | मैं दीये की वो बाती हूँ जिसको जल के है बुझ जाना | |
− | + | रातों को तो फ़ैल चाँदनी | |
− | + | है बस प्रीत का राग सुनाती | |
− | + | देहरी और सूने आँगन में | |
− | + | मैं ही आस का दीप जलाती | |
− | + | ऊषा की किरणों संग जिसको पलभर में है मिट जाना | |
− | + | मैं दीये की वो बाती हूँ जिसको जल के है बुझ जाना | |
− | + | आस यही विश्वास यही कि | |
− | + | व्यर्थ नही मेरा जीवन | |
− | + | तिल तिल खुद को जला जला कर | |
− | + | किया अमर अपना यौवन | |
− | + | मेरे प्राण निराश न हो तुम, तमिस्रा से है बैर पुराना | |
− | + | मैं दीये की वो बाती हूँ जिसको जल के है बुझ जाना | |
</poem> | </poem> |
11:14, 2 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
मैं दीये की वो बाती हूँ जिसको जल के है बुझ जाना।
किरण डूबती जब सँझा को
तब जगती मेरी तरुणाई
खुद हो जाती छिन्न भिन्न मैं
करता जब अँधियार लड़ाई
शर्वरी के गहरे साये में तय है एकाकी जल जाना
मैं दीये की वो बाती हूँ जिसको जल के है बुझ जाना
रातों को तो फ़ैल चाँदनी
है बस प्रीत का राग सुनाती
देहरी और सूने आँगन में
मैं ही आस का दीप जलाती
ऊषा की किरणों संग जिसको पलभर में है मिट जाना
मैं दीये की वो बाती हूँ जिसको जल के है बुझ जाना
आस यही विश्वास यही कि
व्यर्थ नही मेरा जीवन
तिल तिल खुद को जला जला कर
किया अमर अपना यौवन
मेरे प्राण निराश न हो तुम, तमिस्रा से है बैर पुराना
मैं दीये की वो बाती हूँ जिसको जल के है बुझ जाना