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सिन्धु में मछलियों से,

20:12, 5 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण

जो असंख्य
पृथ्वी पर चीटिंयों की भाँति,
सिन्धु में मछलियों से,
वायु में विहगों से,
कायर जो,
वीर जो,
ज्ञानशून्य
ज्ञानी जो,
और जो बच्चों से,
जो विध्वंसक हैं
और निर्माता हैं —
उन्हीं की गाथा हमारी पुस्तक में है।

वे जो देशद्रोही के लोभ में आ धोखा खा जाते हैं,
हाथों का परचम पृथ्वी पर डाल देते हैं,
और अपने शत्रु को समर में छोड़कर
घर भाग आते हैं।

जो हज़ारों आदर्शच्युत व्यक्तियों पर तलवारें खींच लेते हैं,
जो हरे वृक्ष की भाँति हँसा करते हैं,
किसी कारण के बिना जो रोया करते हैं,
माँ और पत्नी को कोसते रहते हैं —
हमारी पुस्तक में उन्हीं की गाथा है।

भाग्य में जो लिखा है
लोहे के,
कोयले के,
चीनी के,
लाल रंग ताम्बे के,
रुई के,
प्रेम, निर्ममता और जीवन के,
उद्योग की हर शाखा के,
नभ के,
मरुभूमि के,
नीले महासिन्धु के,
नदियों और घुप्प तल के,
जोती हुई भूमि और नगरों के,
भाग्य में लिखा बदल जाता है —
एक सुबह ऐसा सूरज निकल आता है
पौ फटने पर जब कालिमा के किनारे से
वे अपने भारी हाथ पृथ्वी पर टेककर
खड़े हो जाते हैं।

सबसे प्रबुद्ध दर्पण वे ही हैं,
सबसे रंगीन रूप उनमें उभरते हैं,
वे ही हमारी सदी के विजेता थे, पराजित थे
उनके विषय में बहुत कुछ कहा जाता था
और उनके विषय में
यह भी कहा गया था —
उनके पास खोने को कुछ नहीं, केवल ज़ंजीरें हैं।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : चन्द्रबली सिंह