भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जोश मलसियानी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKParichay |चित्र= |नाम=जोश मलसियानी |उपनाम=पण्डित लभ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 22: | पंक्ति 22: | ||
* [[जब दुआएँ भी कुछ असर न करें / जोश मलसियानी]] | * [[जब दुआएँ भी कुछ असर न करें / जोश मलसियानी]] | ||
* [[जितने थे तिरे जल्वे सब बन गए बुत-ख़ाने / जोश मलसियानी]] | * [[जितने थे तिरे जल्वे सब बन गए बुत-ख़ाने / जोश मलसियानी]] | ||
− | * [तिरी याद में कब क़यामत न टूटी तिरे ग़म में कब हश्र बरपा न देखा / जोश मलसियानी]] | + | * [[तिरी याद में कब क़यामत न टूटी तिरे ग़म में कब हश्र बरपा न देखा / जोश मलसियानी]] |
* [[दाग़ दिल चमका तो ग़म पैदा हुआ / जोश मलसियानी]] | * [[दाग़ दिल चमका तो ग़म पैदा हुआ / जोश मलसियानी]] | ||
* [[दिल-ए-फ़सुर्दा पे सौ बार ताज़गी आई / जोश मलसियानी]] | * [[दिल-ए-फ़सुर्दा पे सौ बार ताज़गी आई / जोश मलसियानी]] |
03:13, 11 मार्च 2017 का अवतरण
जोश मलसियानी
क्या आपके पास चित्र उपलब्ध है?
कृपया kavitakosh AT gmail DOT com पर भेजें
कृपया kavitakosh AT gmail DOT com पर भेजें
जन्म | 1 फ़रवरी 1884 |
---|---|
निधन | 27 जनवरी 1976 |
उपनाम | पण्डित लभु राम |
जन्म स्थान | जालन्धर, पंजाब, भारत |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
दीवान-ए-ग़ालिब मा' शरह (व्याख्या के साथ) | |
विविध | |
पद्मश्री (1971), आजकल (उर्दू) के सम्पादक रहे | |
जीवन परिचय | |
जोश मलसियानी / परिचय |
कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ
- आग है आग तिरी तेग़-ए-अदा का पानी / जोश मलसियानी
- उस के हर रंग से क्यूँ शोला-ज़नी होती है / जोश मलसियानी
- किताबों ने गो इस्तिआरों में हम को बताए बहुत से ठिकाने तुम्हारे / जोश मलसियानी
- जब दुआएँ भी कुछ असर न करें / जोश मलसियानी
- जितने थे तिरे जल्वे सब बन गए बुत-ख़ाने / जोश मलसियानी
- तिरी याद में कब क़यामत न टूटी तिरे ग़म में कब हश्र बरपा न देखा / जोश मलसियानी
- दाग़ दिल चमका तो ग़म पैदा हुआ / जोश मलसियानी
- दिल-ए-फ़सुर्दा पे सौ बार ताज़गी आई / जोश मलसियानी
- नामा-बर भी वहाँ रसा न हुआ / जोश मलसियानी
- नाला-ए-जाँ-गुदाज़ ने मारा / जोश मलसियानी
- बन्दा-ए-मोहर-ब-लब हूँ मैं सना-ख़्वाँ तेरा / जोश मलसियानी
- बला से कोई हाथ मलता रहे / जोश मलसियानी
- बहस में दोनों को लुत्फ़ आता रहा / जोश मलसियानी
- मय-कशो जाम उठा लो कि घटाएँ आईं / जोश मलसियानी
- मौत की ज़द का ख़तर हर फ़र्द को हर घर में है / जोश मलसियानी
- ये दौर-ए-ख़िरद है दौर-ए-जुनूँ इस दौर में जीना मुश्किल है / जोश मलसियानी
- रहा पेश-ए-नज़र हसरत का बाब अव्वल से आख़िर तक / जोश मलसियानी
- वतन की सर-ज़मीं से इश्क़ ओ उल्फ़त हम भी रखते हैं / जोश मलसियानी
- हवादिस पर न ऐ नादाँ नज़र कर / जोश मलसियानी