{{KKGlobal}}
{{KKAnooditRachnakaarKKParichay|चित्र=Gurpreet.jpg
|नाम=गुरप्रीत
|उपनाम=
|जन्म=07 मई 1968
|मृत्यु=
|जन्मस्थान= मानसा, पंजाब|कृतियाँ=शबदां दी मरज़ी(1996), अकारन(2001), सियाही घुली है(2001)|विविध= “शबदां दी मरज़ी” को गुरू नानक देव युनिवर्सिटी, अमृतसर की ओर से वर्ष 1996 का प्रो0 मोहन सिंह कविता पुरस्कार।
|जीवनी=[[गुरप्रीत़ / परिचय]]
}}
{{KKCatPunjab}}
====प्रतिनिधि रचनाएँ====
* [[घर / गुरप्रीत]]
* [[दोस्ती / गुरप्रीत़गुरप्रीत]]
* [[जीने की कला / गुरप्रीत]]
* [[माँ / गुरप्रीत]]
* [[पिता होने की कोशिश / गुरप्रीत]]
* [[चिट्ठियों से भरा झोला / गुरप्रीत़गुरप्रीत]]
* [[राशन की सूची और कविता / गुरप्रीत]]
====जगजीत सिद्धू द्वारा अनूदित====* [[ पत्थर / गुरप्रीत]]* [[ग़ालिब की हवेली / गुरप्रीत]] * [[पिता / गुरप्रीत की सात कविताएंहिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव (1) घरगुम हुई चीज कोतलाशने के लिएखंगाल डालती थीघर का हर अंधेरा-तंग कोनामेरी माँ !बीवी भी अब ऐसा ही करती है]]* [[बिका हुआ मकान और अपनी ससुराल में बहन भी ! चीज़ों के गुम होनेऔर इनके रोने के लिएअगर घर में अंधेरी-तंग जगहें न होंतीतो घर का नाम भीघर नहीं होता। (2) दोस्ती जब छोटे-छोटे कोमल पत्ते फूटते हैंऔर खिलते हैं रंग-बिरंगे फूलमैं याद करता हूँ जड़ें अपनीअतल गहरी । जब पीले पत्ते झड़ते हैंऔर फूल बीज बनमिट्टी में दब जाते हैंमैं याद करता हूँ जड़ें अपनीअतल गहरी । (3) जीने की कला ये अर्थजो जीवंत हो उठेमेरे सामनेअगर ये शब्दों की देह से होकरन आतेतो कैसे आतेमैं हँसता हूँ, प्यार करता हूँरोता हूँ, लड़ता हूँचुप हो जाता हूँपार नहीं हूँ सब कुछ सेमुझे जीना आता हैजीने की कला नहीं। (4) माँ मैं माँ को प्यार करता हूँइसलिए नहींकि जन्म दिया हैउसने मुझे मैं माँ को प्यार करता हूँइसलिए नहींकि पाला-पोसा हैउसने मुझे मैं माँ को प्यार करता हूँइसलिएकि उसकोअपने दिल की बात कहने के लिएशब्दों की ज़रूरत नहीं पड़ती मुझे। (5) पिता होने की कोशिश दु:खगठरी मेंढ़कों कीगाँठ खोलता हूँतो उछ्लते-कूदते बिखर जाते हैंघर के चारों तरफ हर रोज़एक नई गाँठ लगाता हूँइस गठरी में कला यही है मेरीदिखने नहीं दूँसिर पर उठाई गठरी यहबच्चों को।(6) चिट्ठियों से भरा झोला कविता आई सुबह-सुबहजागा नहीं था मैं अभीसिरहाने रख गई- ‘उत्साह’। उठा जबदौड़कर मिला मुझे ‘उत्साह’कविता की चिट्ठियों से भरा झोला थमाने। एक चिट्ठीमैंने अपनी बच्ची को दी‘पढ़ती जाना स्कूल तकमन लगा रहेगा…’ एक चिट्ठी बेटे को दीकि दे देना अपने अध्यापक कोवह तुझे बच्चा बन कर मिलेगा…चिड़िया / गुरप्रीत]] * [[कामरेड / गुरप्रीत]] चिट्ठी एक कविता की* [[लेखा / गुरप्रीत]]मैंने पकड़ाई पत्नी कोगूँध दी उसने आटे में। पिता इसी चिट्ठी * [[आदिकाल सेआज किसी घर कीछत डाल कर आया लिखी जाती है! नहीं दी चिट्ठी मैंने माँ कोवह तो खुद एक चिट्ठी है ! (7) राशन की सूची और कविता/ गुरप्रीत]] 5 लीटर रिफाइंड धारा5 किलो चीनी5 किलो साबुन कपड़े धोने वाला1 किलो मूंगी मसरी1 पैकेट सोयाबीनपैकेट एक नमक, भुने चनेथैली आटाइलायची-लौंग 25 ग्राम… कविता की किताब मेंकहाँ से आ गईरसोई के राशन की सूची ? मैं इसे कविता सेअलग कर देना चाहता हूँपर गहरे अंदर से उठतीएक आवाज़रोक देती है मुझेऔर कहती है –अगर रसोई के राशन की सूचीजाना चाहती है कविता के साथफिर तू कौन होता हैइसे पृथक करने वालाफैसला सुनाता ? मैं मुस्कराता हूँराशन की सूची कोकविता की * [[दोस्त ही रहने देता हूँ। दोस्तो !नाराज़ मत होनायह मेरा नहीं मेरे अंदर का फैसला हैअंदर को भला कौन रोके ! सूची अगर तुममेरी रसोई की नहींतो अपनी की पढ़ लेना कविता अगर तुममेरी नहींतो अपने अंदर की पढ़ लेना।/ गुरप्रीत]]