भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गळगचिया (22) / कन्हैया लाल सेठिया" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
{{KKCatRajasthaniRachna}}
 
{{KKCatRajasthaniRachna}}
 
<poem>
 
<poem>
 +
बादळवाई रो दिन। मधरो मधरो आथूंणूं  बायरो चालै। खेजड़ी उपरां बैठी कमेड़ी बोली टमरक टूं।
 +
नीचै छयाँ में सूतो मिनख सोच्यो-किस्यो क सोवणूं पंखेरू हैै। अतै में कमेड़ी बींठ करी, सीधी आ र मिनख रै उपराँ पड़ी, मिनख झुंझळा र बोल्यो- किस्यो क बदजात जीव है।
 
</poem>
 
</poem>

13:36, 17 मार्च 2017 के समय का अवतरण

बादळवाई रो दिन। मधरो मधरो आथूंणूं बायरो चालै। खेजड़ी उपरां बैठी कमेड़ी बोली टमरक टूं।
नीचै छयाँ में सूतो मिनख सोच्यो-किस्यो क सोवणूं पंखेरू हैै। अतै में कमेड़ी बींठ करी, सीधी आ र मिनख रै उपराँ पड़ी, मिनख झुंझळा र बोल्यो- किस्यो क बदजात जीव है।