भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दोहे / घाघ" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=घाघ }} {{KKCatDoha}} सर्व तपै जो रोहिनी, सर्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}
 
}}
 
{{KKCatDoha}}
 
{{KKCatDoha}}
 +
<poem>
 
सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
 
सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।
+
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर॥1॥
  
 
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
 
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।
+
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए॥2॥
  
 
भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।
 
भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।।
+
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय॥3॥
  
 
अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।
 
अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
+
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि॥4॥
  
 
सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
 
सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।।
+
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय॥5॥
  
 
सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
 
सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।।
+
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय॥6॥
 +
 
 +
तीतरवर्णी बादली विधवा काजल रेख।
 +
वा बरसे वा घर करे इमे मीन न मेख॥7॥
 +
 
 +
उत्तर चमके बीजली पूरब बहे जु बाव।
 +
घाघ कहे सुण भड्डरी बरधा भीतर लाव॥8॥
 +
 
 +
सावन केरे प्रथम दिन, उगत न दीखै भान।
 +
चार महीना बरसै पानी, याको है रमान॥9॥
 +
 
 +
चैत्र मास दशमी खड़ा, जो कहुँ कोरा जाइ।
 +
चौमासे भर बादला, भली भॉंति बरसाई॥10॥
 +
 
 +
नवै असाढ़े बादले, जो गरजे घनघोर।
 +
कहै भड्डरी ज्योतिसी, काले पड़े चहुँ ओर॥11॥
 +
 
 +
सावन पुरवाई चलै, भादौ में पछियॉंव।
 +
कन्त डगरवा बेच के, लरिका जाइ जियाव॥12॥</poem>

16:26, 28 अप्रैल 2017 के समय का अवतरण

सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर॥1॥

शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए॥2॥

भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय॥3॥

अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि॥4॥

सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय॥5॥

सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय॥6॥

तीतरवर्णी बादली विधवा काजल रेख।
वा बरसे वा घर करे इमे मीन न मेख॥7॥

उत्तर चमके बीजली पूरब बहे जु बाव।
घाघ कहे सुण भड्डरी बरधा भीतर लाव॥8॥

सावन केरे प्रथम दिन, उगत न दीखै भान।
चार महीना बरसै पानी, याको है रमान॥9॥

चैत्र मास दशमी खड़ा, जो कहुँ कोरा जाइ।
चौमासे भर बादला, भली भॉंति बरसाई॥10॥

नवै असाढ़े बादले, जो गरजे घनघोर।
कहै भड्डरी ज्योतिसी, काले पड़े चहुँ ओर॥11॥

सावन पुरवाई चलै, भादौ में पछियॉंव।
कन्त डगरवा बेच के, लरिका जाइ जियाव॥12॥