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"युगल छवि / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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थकी थकी सुरत निहारेय ‘कछुमनमा’ हो।
 
थकी थकी सुरत निहारेय ‘कछुमनमा’ हो।
 
युगल मुरत चित लावेय हो सांवलिया॥17॥
 
युगल मुरत चित लावेय हो सांवलिया॥17॥
ज्यास के परसाद टूटी लोक-गीत रामा।
 
‘गीता, लोक-गीता, रचे चाहों हो सांवलिया॥
 
भूल चूक में लिखवा होइते अबश रामा।
 
देहाती गंवार हठ करैय हो सांवलिया॥18॥
 
शनिवार छिलैय रामा पंचमी के तिथिया हो।
 
संबत हजार दूव छवो हो सांवलिया॥
 
तन पुलकीत मन परम हुलसवा हो।
 
अरुण उदय केर वेर हो सांवलिया॥19॥
 
पुष मास पछुवा पवन बहे सन सन।
 
घाम महीं बैठि बैठि लिखूं हो सांवलिया॥
 
बिमल हिरदय छेल दिन भर लिखी लेल।
 
सनमुख भेल चनरदेव हो सांवलिया॥20॥
 
कल-बल-छल, छारि शारदा के ध्यान धरि।
 
मति अनुकूल गीत गढूँ हो सांवलिया॥
 
सरल मधुर गांव के मीठी मीठी बोलिया हो।
 
‘लछुमन’ चखि चखि लिखैय हो सांवलिया॥21॥
 
लिखि लिखी एक एक भाग करि गोता रामा।
 
प्रभु के चरनियां चढ़ाऊं हो सांवलिया॥
 
हुनको परसाद रामा सवतर बांटे चाहों।
 
घर घर, शहर, नगर हो सांवलिया॥22॥
 
 
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17:37, 28 अप्रैल 2017 के समय का अवतरण

एक हाथ धरैय रामा मटुकी के कोरवा हो।
दोसर मोहन गले डारैय हो सांवलिया॥
बहियाँ में शोभैय रामा लाली पीली फुदना हो।
कंगना अनूप रंग लागैय हो सांवलिया॥15॥
एक हाथ धरैय रामा मटुकी के कोरवा हो।
दोसर मोहन गले डारैय हो सांवलिया॥
बहियाँ में शोभैय रामा लाली पीली फुदना हो।
कंगना अनूप रंग लागैय हो सांवलिया॥15॥
बारी रे उमीरिया के गोरी कारी जोरिया हो।
देखत कि अँखियां अघावै हो सांवलिया॥
नाचत गावत अरु बांसुरी बजात रामा।
गैया कन्हैया ले ले आवैय हो सांवलिया॥16॥
मलय वियार बहैय उड़ि उड़ि धूल परैय।
झुंड झुंड गैया घर आत हो सांवलिया॥
थकी थकी सुरत निहारेय ‘कछुमनमा’ हो।
युगल मुरत चित लावेय हो सांवलिया॥17॥