भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"माँ / नीलेश रघुवंशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीलेश रघुवंशी }} माँ बेसाख़्ता आ जाती है तेरी याद दिखत...) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=नीलेश रघुवंशी | |रचनाकार=नीलेश रघुवंशी | ||
+ | |संग्रह=घर-निकासी / नीलेश रघुवंशी | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
+ | <poem> | ||
माँ बेसाख़्ता आ जाती है तेरी याद | माँ बेसाख़्ता आ जाती है तेरी याद | ||
+ | दिखती है जब कोई औरत। | ||
− | + | घबराई हुई-सी प्लेटफॉम पर | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | घबराई हुई-सी | + | |
− | + | ||
हाथों में डलिया लिए | हाथों में डलिया लिए | ||
− | |||
− | |||
आँचल से ढँके अपना सर | आँचल से ढँके अपना सर | ||
− | + | माँ मुझे तेरी याद आ जाती है। | |
− | माँ मुझे तेरी याद आ जाती | + | |
− | + | ||
− | + | ||
मेरी माँ की तरह | मेरी माँ की तरह | ||
− | + | ओ स्त्री! | |
− | ओ स्त्री | + | |
− | + | ||
− | + | ||
उम्र के इस पड़ाव पर भी घबराहट है | उम्र के इस पड़ाव पर भी घबराहट है | ||
+ | क्यों, आख़िर क्यों? | ||
− | + | क्या पक्षियों का कलरव | |
− | + | झूठमूठ ही बहलाता है हमें? | |
− | + | </poem> | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | झूठमूठ ही बहलाता है हमें ? | + |
15:48, 26 जून 2017 के समय का अवतरण
माँ बेसाख़्ता आ जाती है तेरी याद
दिखती है जब कोई औरत।
घबराई हुई-सी प्लेटफॉम पर
हाथों में डलिया लिए
आँचल से ढँके अपना सर
माँ मुझे तेरी याद आ जाती है।
मेरी माँ की तरह
ओ स्त्री!
उम्र के इस पड़ाव पर भी घबराहट है
क्यों, आख़िर क्यों?
क्या पक्षियों का कलरव
झूठमूठ ही बहलाता है हमें?