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19:26, 27 जून 2017 के समय का अवतरण
अभी-अभी
एक शब्द जनमा
उस बच्चे के मुँह से
माँ से जनमी
एक पूरी भाषा समृद्ध
अभी-अभी
यह समय था तुम्हारा
अब हुआ किसी अन्य का
अभी-अभी
वह दरख़्त हुआ
उस चिड़िया का
एकदम अपना
अभी-अभी
एक पूरा युद्ध लड़ा गया
खुरपी से
हंसिया से
कुदाल से
लाठी से
अभी-अभी
खुली एक ट्रेन
कि दूसरी आ लगी झट से
अभी-अभी
रसोईघर से निकल
फैली इस पृथ्वी पर
लहसुन की गंध अनोखी
अभी-अभी
यह देह हुई उसकी
यह बीज
यह कामना
यह शोर
यह एकांत हुआ उसी का
अभी-अभी
आग हुई मेरी
फाग हुआ मेरा
राग हुआ मेरा
अभी-अभी
वहां था सूर्यास्त
अब दिखता था
सूर्योदय वहीं पर
अभी-अभी
जो भूल गया था
रास्ता अपने घर का
बता रहा था
किसी अन्य को
उसके घर का रास्ता
अभी-अभी
वह मटका था खाली
अब भरा था
मीठे जल से
अभी-अभी
एक लड़का कूदा पानी में
बहा धार में
एक दूसरे लड़के ने लाँघा
अपने ही अंदर के पुरुष को
अभी-अभी
जलतरंग बजाया उसने अद्भुत
ओझल को प्रकट किया उसी ने
अभी-अभी
मैं धँसा तुम्हारी ही धमक में
तुम धँसी मुझ में
सन्नाटे को चीर