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|रचनाकार=भवप्रीतानन्द ओझा
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|संग्रह=अंगिका के प्रतिनिधि प्रकृति कविता / गंगा प्रसाद राव
 
|संग्रह=अंगिका के प्रतिनिधि प्रकृति कविता / गंगा प्रसाद राव

13:52, 14 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

झूलै सब डार पात, फूलै छै मनॅ के फूल
विरहिन के बढ़लॅ छै मनॅ के शूल
बैठलॅ छै ठारी, करी सोलहो सिंगार
कोयल जे पैलकै बसन्तँ के प्यार
नया ताल राग रंग घुंघरु के शोर
सुनी सुनी नाचै छै जंगलो में मोर
छलकै छै चाँदनी ज्यों चंदा के प्यार
कि दमदम कोच गोरी छै खाड़ी सब द्वार
लाल लाल ओठ भेलै फुल्लॅ पलास
उड़तै चुनरिया लै पागल बतास
पपीहा रॅ टेर सुनी ऐंठै छै देह
सालै छॅ सूना में पिया के नेह
सिहरै छै अंग अंग टूसै रं मॅन
लुटियो नै जाय कहीं सोनॅ रं तॅन