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कह-मुकरियाँ / अमीर खुसरो

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=अमीर खुसरो]][[Category:कविताएँ]]}} [[Category:अमीर खुसरो]]{{KKCatKahMukariyan}}<poem>१. खा गया पी गया दे गया बुत्ता ऐ सखि साजन? ना सखि कुत्ता!
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*२. लिपट लिपट के वा के सोई छाती से छाती लगा के रोई दांत से दांत बजे तो ताड़ा ऐ सखि साजन? ना सखि जाड़ा!
खा गया पी गया३. रात समय वह मेरे आवे भोर भये वह घर उठि जावे यह अचरज है सबसे न्यारा ऐ सखि साजन? ना सखि तारा!
दे गया बुत्ता४. नंगे पाँव फिरन नहिं देत पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत पाँव का चूमा लेत निपूता ऐ सखि साजन? ना सखि जूता!
क्यों सखी ५. ऊंची अटारी पलंग बिछायो मैं सोई मेरे सिर पर आयो खुल गई अंखियां भयी आनंद ऐ सखि साजन ? ना सखि चांद!
६. जब माँगू तब जल भरि लावे मेरे मन की तपन बुझावे मन का भारी तन का छोटा ऐ सखि साजन? ना सखी कुत्ता सखि लोटा!
७.
वो आवै तो शादी होय
उस बिन दूजा और न कोय
मीठे लागें वा के बोल
ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल!
लिपट लिपट के वा के सोई <br>८. छाती से छाती लगा के रोई <br>बेर-बेर सोवतहिं जगावे दांत से दांत बजे ना जागूँ तो ताड़ा। <br>काटे खावे व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की सखी सखि साजन? ना सखी, जाड़ासखि मक्खी!<br><br>
ऊंची अटारी पलंग बिछायो <br>९. मैं सोई मेरे सिर पर आयो <br>अति सुरंग है रंग रंगीले खुल गई अंखियां भयी आनंद। <br>है गुणवंत बहुत चटकीलो राम भजन बिन कभी न सोता सखी सखि साजन? ना सखी, चांदसखि तोता! <br><br>
वो आवै तो शादी होय <br>१०. उस बिन दूजा आप हिले और न कोय <br>मोहे हिलाए मीठे लागें वा का हिलना मोए मन भाए हिल हिल के बोल। <br>वो हुआ निसंखा सखी सखि साजन? ना सखी, ढोलसखि पंखा! <br><br>
आप हिले और मोहे हिलाए <br>११. वा का हिलना मोए मन भाए <br>अर्ध निशा वह आया भौन हिल हिल के वो हुआ निसंखा। <br>सुंदरता बरने कवि कौन निरखत ही मन भयो अनंद सखी सखि साजन? ना सखी, पंखासखि चंद! <br><br>
सगरी रैन छतियां पर राख <br>१२. रूप रंग सब वा का चाख <br>शोभा सदा बढ़ावन हारा भोर भई जब दिया उतार। <br>आँखिन से छिन होत न न्यारा आठ पहर मेरो मनरंजन सखी सखि साजन? ना सखी, हारसखि अंजन!<br><br>
पड़ी थी मैं अचानक चढ़ आयो <br>१३. जब उतरयो तो पसीनो आयो <br>जीवन सब जग जासों कहै सहम गई नहीं सकी पुकार। <br>वा बिनु नेक न धीरज रहै हरै छिनक में हिय की पीर सखी सखि साजन? ना सखी, बुखारसखि नीर!<br><br>
सेज पड़ी मोरे आंखों आए <br>१४. डाल सेज मोहे मजा दिखाए <br>बिन आये सबहीं सुख भूले किस से कहूं अब मजा में अपना। <br>आये ते अँग-अँग सब फूले सीरी भई लगावत छाती सखी सखि साजन? ना सखी, सपनासखि पाती! <br><br>
१५. सगरी रैन छतियां पर राख रूप रंग सब वा का चाख भोर भई जब दिया उतार ऐ सखि साजन? ना सखि हार!  १६. पड़ी थी मैं अचानक चढ़ आयो जब उतरयो तो पसीनो आयो सहम गई नहीं सकी पुकार ऐ सखि साजन? ना सखि बुखार!  १७. सेज पड़ी मोरे आंखों आए डाल सेज मोहे मजा दिखाए किस से कहूं अब मजा में अपना ऐ सखि साजन? ना सखि सपना!  १८. बखत बखत मोए वा की आस <br> रात दिना ऊ रहत मो पास <br> मेरे मन को सब करत है काम। <br>काम सखी सखि साजन? ना सखी, सखि राम!  १९. सरब सलोना सब गुन नीका वा बिन सब जग लागे फीका वा के सर पर होवे कोन ऐ सखि ‘साजन’ना सखि! लोन(नमक)  २०. सगरी रैन मिही संग जागा भोर भई तब बिछुड़न लागा उसके बिछुड़त फाटे हिया’ ए सखि ‘साजन’ ना, सखि! दिया(दीपक) 21.राह चलत मोरा अंचरा गहे।मेरी सुने न अपनी कहेना कुछ मोसे झगडा-टंटाऐ सखि साजन ना सखि कांटा! 22.बरसा-बरस वह देस में आवे, मुँह से मुँह लाग रस प्यावे।वा खातिर मैं खरचे दाम, ऐ सखि साजन न सखि! आम।। 23.नित मेरे घर आवत है, रात गए फिर जावत है।मानस फसत काऊ के फंदा, ऐ सखि साजन न सखि! चंदा।। 24.आठ प्रहर मेरे संग रहे, मीठी प्यारी बातें करे।श्याम बरन और राती नैंना, ऐ सखि साजन न सखि! मैंना।। 25.घर आवे मुख घेरे-फेरे, दें दुहाई मन को हरें,कभू करत है मीठे बैन, कभी करत है रुखे नैंन।ऐसा जग में कोऊ होता, ऐ सखि साजन न सखि! तोता।। <br><br/poem>