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कह-मुकरियाँ / अमीर खुसरो

1,418 bytes added, 05:46, 19 सितम्बर 2017
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|रचनाकार=अमीर खुसरो
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{{KKCatKahMukariyan}}
<poem>
१.
खा गया पी गया
दे गया बुत्ता
ऐ सखि साजन?
ना सखि कुत्ता!
रचनाकार: [[अमीर खुसरो]]२. [[Category:कविताएँ]]लिपट लिपट के वा के सोई [[Category:अमीर खुसरो]]छाती से छाती लगा के रोई दांत से दांत बजे तो ताड़ा ऐ सखि साजन? ना सखि जाड़ा!
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*३. रात समय वह मेरे आवे भोर भये वह घर उठि जावे यह अचरज है सबसे न्यारा ऐ सखि साजन? ना सखि तारा!
<br>.<br>खा गया पी गया <br>नंगे पाँव फिरन नहिं देत दे गया बुत्ता <br>पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत पाँव का चूमा लेत निपूता ऐ सखि साजन? <br>ना सखि कुत्ताजूता! <br><br>
.<br>लिपट लिपट के वा के सोई <br>ऊंची अटारी पलंग बिछायो छाती से छाती लगा के रोई <br>मैं सोई मेरे सिर पर आयो दांत से दांत बजे तो ताड़ा <br>खुल गई अंखियां भयी आनंद ऐ सखि साजन? ना सखि जाड़ाचांद!<br><br>
.<br>रात समय वह मेरे आवे <br>जब माँगू तब जल भरि लावे भोर भये वह घर उठि जावे <br>मेरे मन की तपन बुझावे यह अचरज है सबसे न्यारा <br> मन का भारी तन का छोटा ऐ सखि साजन? ना सखि तारालोटा! <br><br>
.<br>नंगे पाँव फिरन नहिं देत<br>वो आवै तो शादी होय पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत<br>उस बिन दूजा और न कोय पाँव का चूमा लेत निपूता <br>मीठे लागें वा के बोल ऐ सखि साजन? ना सखि जूताढोल! <br>
.<br>ऊंची अटारी पलंग बिछायो <br>बेर-बेर सोवतहिं जगावे मैं सोई मेरे सिर पर आयो <br>ना जागूँ तो काटे खावे खुल गई अंखियां भयी आनंद <br>व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की ऐ सखि साजन? ना सखि चांदमक्खी! <br><br>
.<br>जब माँगू तब जल भरि लावे <br>अति सुरंग है रंग रंगीले मेरे मन की तपन बुझावे <br>है गुणवंत बहुत चटकीलो मन का भारी तन का छोटा <br>राम भजन बिन कभी न सोता ऐ सखि साजन? ना सखि लोटातोता! <br><br>
१०.<br>वो आवै तो शादी होय <br>उस बिन दूजा आप हिले और न कोय <br>मोहे हिलाए मीठे लागें वा का हिलना मोए मन भाए हिल हिल के बोल <br>वो हुआ निसंखा ऐ सखि साजन? ना सखि ढोलपंखा! <br><br>
११.<br>बेर-बेर सोवतहिं जगावे <br>अर्ध निशा वह आया भौन ना जागूँ तो काटे खावे <br>सुंदरता बरने कवि कौन व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की <br>निरखत ही मन भयो अनंद ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खीचंद! <br><br>
१२.<br>अति सुरंग है रंग रंगीले <br>शोभा सदा बढ़ावन हारा है गुणवंत बहुत चटकीलो<br>राम भजन बिन कभी आँखिन से छिन होत सोता <br>न्यारा आठ पहर मेरो मनरंजन ऐ सखि साजन? ना सखि तोताअंजन! <br><br>
१०१३.<br>आप हिले और मोहे हिलाए <br>जीवन सब जग जासों कहै वा का हिलना मोए मन भाए <br>बिनु नेक न धीरज रहै हिल हिल के वो हुआ निसंखा <br>हरै छिनक में हिय की पीर ऐ सखि साजन? ना सखि पंखानीर! <br><br>
१११४.<br>अर्ध निशा वह आया भौन <br>बिन आये सबहीं सुख भूले सुंदरता बरने कवि कौन <br>आये ते अँग-अँग सब फूले निरखत ही मन भयो अनंद<br>सीरी भई लगावत छाती ऐ सखि साजन? ना सखि चंदपाती!<br><br>
१२१५.<br>शोभा सदा बढ़ावन हारा<br>सगरी रैन छतियां पर राख आँखिन से छिन होत न न्यारा <br>रूप रंग सब वा का चाख आठ पहर मेरो मनरंजन<br> भोर भई जब दिया उतार ऐ सखि साजन? ना सखि अंजनहार! <br><br>
१३१६.<br>जीवन सब जग जासों कहै<br> पड़ी थी मैं अचानक चढ़ आयो वा बिनु नेक न धीरज रहै<br>जब उतरयो तो पसीनो आयो हरै छिनक में हिय की पीर<br>सहम गई नहीं सकी पुकार ऐ सखि साजन? ना सखि नीरबुखार!<br><br>
१४१७.<br>बिन आये सबहीं सुख भूले<br>सेज पड़ी मोरे आंखों आए आये ते अँग-अँग सब फूले<br>डाल सेज मोहे मजा दिखाए सीरी भई लगावत छाती<br>किस से कहूं अब मजा में अपना ऐ सखि साजन? ना सखि पातीसपना!<br><br>
१५१८.<br>सगरी रैन छतियां पर राख <br>रूप रंग सब बखत बखत मोए वा का चाख <br>की आस भोर भई जब दिया उतार <br>रात दिना ऊ रहत मो पास मेरे मन को सब करत है काम सखी सखि साजन? ना सखि हारराम!<br><br>
१६१९.<br>पड़ी थी मैं अचानक चढ़ आयो <br>सरब सलोना सब गुन नीका जब उतरयो तो पसीनो आयो <br>वा बिन सब जग लागे फीका सहम गई नहीं सकी पुकार <br>वा के सर पर होवे कोन ऐ सखि साजन? ना ‘साजन’ना सखि बुखार!<br><br> लोन(नमक)
१७२०.<br>सेज पड़ी मोरे आंखों आए <br>सगरी रैन मिही संग जागा डाल सेज मोहे मजा दिखाए <br>भोर भई तब बिछुड़न लागा किस से कहूं अब मजा में अपना <br>उसके बिछुड़त फाटे हिया’ सखि साजन? ‘साजन’ ना , सखि सपना! <br><br>दिया(दीपक)
१८21.<br>बखत बखत मोए राह चलत मोरा अंचरा गहे।मेरी सुने न अपनी कहेना कुछ मोसे झगडा-टंटाऐ सखि साजन ना सखि कांटा! 22.बरसा-बरस वह देस में आवे, मुँह से मुँह लाग रस प्यावे।वा की आस <br>खातिर मैं खरचे दाम, ऐ सखि साजन न सखि! आम।। 23.नित मेरे घर आवत है, रात दिना ऊ रहत मो पास <br>गए फिर जावत है।मानस फसत काऊ के फंदा, ऐ सखि साजन न सखि! चंदा।। 24.आठ प्रहर मेरे संग रहे, मीठी प्यारी बातें करे।श्याम बरन और राती नैंना, ऐ सखि साजन न सखि! मैंना।। 25.घर आवे मुख घेरे-फेरे, दें दुहाई मन को सब हरें,कभू करत है काम <br>मीठे बैन, कभी करत है रुखे नैंन।ऐसा जग में कोऊ होता, ऐ सखि साजन? ना सखि राम! तोता।। <br><br/poem>