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कह-मुकरियाँ / अमीर खुसरो

1,532 bytes added, 05:46, 19 सितम्बर 2017
|रचनाकार=अमीर खुसरो
}}
{{KKCatKahMukariyan}}<brpoem>१.<br>खा गया पी गया <br> दे गया बुत्ता <br> ऐ सखि साजन? <br> ना सखि कुत्ता! <br><br>
२.<br>लिपट लिपट के वा के सोई <br> छाती से छाती लगा के रोई <br> दांत से दांत बजे तो ताड़ा <br> ऐ सखि साजन? ना सखि जाड़ा!<br><br>
३.<br>रात समय वह मेरे आवे <br> भोर भये वह घर उठि जावे <br> यह अचरज है सबसे न्यारा <br> ऐ सखि साजन? ना सखि तारा! <br><br>
४.<br>नंगे पाँव फिरन नहिं देत<br>पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत<br>पाँव का चूमा लेत निपूता <br> ऐ सखि साजन? ना सखि जूता! <br>
५.<br>ऊंची अटारी पलंग बिछायो <br> मैं सोई मेरे सिर पर आयो <br> खुल गई अंखियां भयी आनंद <br> ऐ सखि साजन? ना सखि चांद! <br><br>
६.<br>जब माँगू तब जल भरि लावे <br> मेरे मन की तपन बुझावे <br> मन का भारी तन का छोटा <br> ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा! <br><br>
७.<br>वो आवै तो शादी होय <br> उस बिन दूजा और न कोय <br> मीठे लागें वा के बोल <br> ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल! <br><br>
८.<br>बेर-बेर सोवतहिं जगावे <br> ना जागूँ तो काटे खावे <br> व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की <br> ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खी! <br><br>
९.<br>अति सुरंग है रंग रंगीले <br> है गुणवंत बहुत चटकीलो<br>राम भजन बिन कभी न सोता <br> ऐ सखि साजन? ना सखि तोता! <br><br>
१०.<br>आप हिले और मोहे हिलाए <br> वा का हिलना मोए मन भाए <br> हिल हिल के वो हुआ निसंखा <br> ऐ सखि साजन? ना सखि पंखा! <br><br>
११.<br>अर्ध निशा वह आया भौन <br> सुंदरता बरने कवि कौन <br> निरखत ही मन भयो अनंद<br>ऐ सखि साजन? ना सखि चंद!<br><br>
१२.<br>शोभा सदा बढ़ावन हारा<br>आँखिन से छिन होत न न्यारा <br> आठ पहर मेरो मनरंजन<br> ऐ सखि साजन? ना सखि अंजन! <br><br>
१३.<br>जीवन सब जग जासों कहै<br> वा बिनु नेक न धीरज रहै<br>हरै छिनक में हिय की पीर<br>ऐ सखि साजन? ना सखि नीर!<br><br>
१४.<br>बिन आये सबहीं सुख भूले<br>आये ते अँग-अँग सब फूले<br>सीरी भई लगावत छाती<br>ऐ सखि साजन? ना सखि पाती!<br><br>
१५.<br>सगरी रैन छतियां पर राख <br> रूप रंग सब वा का चाख <br> भोर भई जब दिया उतार <br> सखी सखि साजन? ना सखि हार!<br><br>
१६.<br>पड़ी थी मैं अचानक चढ़ आयो <br> जब उतरयो तो पसीनो आयो <br> सहम गई नहीं सकी पुकार <br> ऐ सखि साजन? ना सखि बुखार!<br><br>
१७.<br>सेज पड़ी मोरे आंखों आए <br> डाल सेज मोहे मजा दिखाए <br> किस से कहूं अब मजा में अपना <br> ऐ सखि साजन? ना सखि सपना! <br><br>
१८.<br>बखत बखत मोए वा की आस <br> रात दिना ऊ रहत मो पास <br> मेरे मन को सब करत है काम <br> ऐ सखि साजन? ना सखि राम!  १९. सरब सलोना सब गुन नीका वा बिन सब जग लागे फीका वा के सर पर होवे कोन ऐ सखि ‘साजन’ना सखि! लोन(नमक)  २०. सगरी रैन मिही संग जागा भोर भई तब बिछुड़न लागा उसके बिछुड़त फाटे हिया’ ए सखि ‘साजन’ ना, सखि! दिया(दीपक) 21.राह चलत मोरा अंचरा गहे।मेरी सुने न अपनी कहेना कुछ मोसे झगडा-टंटाऐ सखि साजन ना सखि कांटा! 22.बरसा-बरस वह देस में आवे, मुँह से मुँह लाग रस प्यावे।वा खातिर मैं खरचे दाम, ऐ सखि साजन न सखि! आम।। 23.नित मेरे घर आवत है, रात गए फिर जावत है।मानस फसत काऊ के फंदा, ऐ सखि साजन न सखि! चंदा।। 24.आठ प्रहर मेरे संग रहे, मीठी प्यारी बातें करे।श्याम बरन और राती नैंना, ऐ सखि साजन न सखि! मैंना।। 25.घर आवे मुख घेरे-फेरे, दें दुहाई मन को हरें,कभू करत है मीठे बैन, कभी करत है रुखे नैंन।ऐसा जग में कोऊ होता, ऐ सखि साजन न सखि! तोता।। <br><br/poem>