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Kavita Kosh से
ओ जन-जन की पीड़ा मिलकर गाओ दुख का महागीत...
जलने दो लाखों दिये दिलों के, रात्रि हो भयभीत...
हर दिशा गूँजने लगे, खाए पलटा अतीत...
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