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|पीछे=हिन्दी साहित्य में स्थान बनाती जापानी विधाऐं
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त्रिवेणी एक तीन पंक्तियों वाली कविता है, यह माना जाता है कि इस विधा को [[गुलज़ार]] साहब ने विकसित किया। कुछ लोग इस विधा की तुलना जापानी काव्य विधा [[हिन्दी साहित्य में स्थान बनाती जापानी विधाऐं| हाइकु]] से करते हुये इसे जापानी हाइकु का स्वदेशी संस्करण भी कहते हैं परन्तु यह पूर्णतः स्वदेश में विकसित विधा है तथा जापानी काव्य विधा [[हिन्दी साहित्य में स्थान बनाती जापानी विधाऐं| हाइकु]] से भिन्न स्वतंत्र विधा है। हाइकु और त्रिवेणी में केवल इतनी समानता है कि दोनों में मात्र तीन पंक्तियां होती है इन तीन पक्तियों की साम्यता के अतिरिक्त अधिक इन दोनो विधाओं में अन्य कोई साम्य नहीं है। त्रिवेणी की रचना का मूल प्रेरणा स्रोत भी जापनी काव्य ही कहा जाता है। वैसे [[गुलज़ार]] साहब ने इसके संबंध में अपनी त्रिवेणी संग्रह रचना [[त्रिवेणी / गुलज़ार| त्रिवेणी]] के प्रकाशन के अवसर पर इसकी परिभाषा इस प्रकार दी थी-
त्रिवेणी एक तीन पंक्तियों वाली कविता है, यह माना जाता है कि इस विधा को [[गुलज़ार]] साहब ने विकसित किया। कुछ लोग इस विधा की तुलना जापानी काव्य विधा [[हिन्दी साहित्य में स्थान बनाती जापानी विधाऐं| हाइकु]] से करते हुये इसे जापानी हाइकु का स्वदेशी संस्करण भी कहते हैं परन्तु यह पूर्णतः स्वदेश में विकसित विधा है तथा जापानी काव्य विधा [[हिन्दी साहित्य में स्थान बनाती जापानी विधाऐं| हाइकु]] से भिन्न स्वतंत्र विधा है। हाइकु और त्रिवेणी में केवल इतनी समानता है कि दोनों में मात्र तीन पंक्तियां होती है इन तीन पक्तियों की साम्यता के अतिरिक्त अधिक इन दोनो विधाओं में अन्य कोई साम्य नहीं है। त्रिवेणी की रचना का मूल प्रेरणा स्रोत भी जापनी काव्य ही कहा जाता है। वैसे [[गुलज़ार]] साहब ने इसके संबंध में अपनी त्रिवेणी संग्रह रचना [[त्रिवेणी / गुलज़ार| त्रिवेणी]] के प्रकाशन के अवसर पर इसकी परिभाषा इस प्रकार दी थी-
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''........शुरू शुरू में तो जब यह फॉर्म बनाई थी, तो पता नहीं था यह किस संगम तक पहुँचेगी - त्रिवेणी नाम इसीलिए दिया था कि पहले दो मिसरे, गंगा-जमुना की तरह मिलते हैं और एक ख़्याल, एक शेर को मुकम्मल करते हैं लेकिन इन दो धाराओं के नीचे एक और नदी है - सरस्वती जो गुप्त है नज़र नहीं आती; त्रिवेणी का काम सरस्वती दिखाना है तीसरा मिसरा कहीं पहले दो मिसरों में गुप्त है, छुपा हुआ है ।1972-73 में जब कमलेश्वर जी सारिका के एडीटर थे, तब त्रिवेणियाँ सारिका में छपती रहीं और अब – त्रिवेणी को बालिग़ होते-होते सत्ताईस-अट्ठाईस साल लग गए --[[गुलज़ार]]''
</poem>[[हाइकु]] में जहां तीन पंक्तियों में क्रमानुसार 5+7+5 कुल मिलाकर केवल 17 वर्णों में विचार अंकित करने की बाध्यता है वहीं त्रिवेणी विधा में ऐसी कोई बाघ्यता न होकर तीन लयवद्ध पंक्तियों में विचार व्यक्त करने होते हैं इस प्रकार तीन पक्तियों की साम्यता के अतिरिक्त इन दोनो विधाओं में अन्य कोई साम्य नहीं है यथा उदाहरण स्वरूप तीन पंक्तियों का एक हाइकु देखे-<poem>
ठहर कर
देखी इंसानियत
ठिठुरी हुई
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-'''डॉ0 [[सुदर्शन प्रियदर्शिनी]]'''
और इन्सानियात के इसी ख्याल को व्यक्त करती गुलजार साहब की यह त्रिवेणी-
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गोले, बारूद, आग, बम, नारे
बाज़ी आतिश की शहर में गर्म है
बंध खोलो कि आज सब "बंद" है
</poem>
--'''[[गुलज़ार]]'''
<poem>*कविताकोश में सम्मिलित कुछ रचनाकार जिन्होने हिन्दी साहित्य की त्रिवेणी विधा में रचना की है इस प्रकार हैं-</poem>
*[[गुलज़ार]]
*[[त्रिपुरारि कुमार शर्मा]]
*[[विनय प्रजापति 'नज़र']]
<poem>*[[रेशमा हिंगोरानी]]*[[प्रताप सोमवंशी]]*कविताकोश में सम्मिलित कुछ रचनाकार जिन्होने जापानी साहित्य से आयातित [[हिन्दी साहित्य में स्थान बनाती जापानी विधाऐं| हाइकुसंकल्प शर्मा]] विधा में हिन्दी साहित्य की रचना की है इस प्रकार हैं-
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*[[सत्यभूषण वर्मा]] , {{KKPageNavigation*[[गोपालदास "नीरज"]],|पीछे=हिन्दी साहित्य में स्थान बनाती जापानी विधाऐं*[[शिव बहादुर सिंह भदौरिया]] , |आगे=प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार*[[सरस्वती माथुर]], *[[सुभाष नीरव]] , *[[सुधा गुप्ता ]], *[[कमलेश भट्ट 'कमल']], डॉ० *[[ जगदीश व्योम]], *[[रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ]], *[[कुँअर बेचैन]] , *[[यदि कोई पूछे तो / मासाओका शिकि|अंजली देवधर]], *[[रमा द्विवेदी]] *[[कृष्ण शलभ]] , *[[ऋतु पल्लवी]] *[[पवन कुमार]], *[[भावना कुँअर]], , *[[अशोक कुमार शुक्ला]], *[[भावना कुँअर]],(आस्ट्रेलिया) *[[सुदर्शन प्रियदर्शिनी]], (यू.एस.ए.) , *[[पूर्णिमा वर्मन]], (संयुक्त अरब अमीरात) ,*[[अनूप भार्गव]] (अमेरिका), *[[रचना श्रीवास्तव]],सारणी=भाषा और साहित्य पर लेख*[[रेखा राजवंशी]] (}}