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18:49, 15 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

मुझे गौर से पढ़ता है
आँखों पर चढ़े नज़र के चश्मे से
सुर्ख़ियों से ताकता है
मेरा निर्विकार चेहरा
भोथरी हो चुकी सम्वेदनायें

मेरे अंदर का मर चुका आदमी
नही देता कोई प्रतिक्रिया
ग़म ख़ुशी या आवेग की
अख़बार पे चस्पा खबरें मात्र खबरें हैं
कोई कौंध नही

मेरी नज़रें तलाशती हैं
बढ़े हुए वेतनमान का स्वीकृत होना
सेल के विज्ञापनों में
छुपी बचत
रिटायरमेंट की आयु सीमा बढ़ाया जाना
और मेरी आँखों में चमकी चालाकी की चमक पढ़
अख़बार रह जाता है भौंचक

अब आदमी अख़बार नही पढ़ता
अख़बार पढ़ता है
आदमी की चालाकी
और हो जाता है उदास