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|रचनाकार=रमानाथ अवस्थी }} {{KKCatGeet}}<poem>
ऐसा कहीं होता नहीं
ऐसा कभी होगा नहीं।
धरती जले बरसे न घन,
सुलगे चिता झुलसे न तन।
औ जिंदगी ज़िंदगी में हों न गम।ग़म।
ऐसा कभी होगा नहीं
डूबे न यौवन की तरी,
हरदम जिए हर आदमी,
उसमें न हो कोई कमी।
ऐसा कभी होगा नहीं,
ऐसा कभी होगा नहीं
ऐसा कभी होता नहीं।
</poem>