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10:24, 7 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण
ऐसा कहीं होता नहीं
ऐसा कभी होगा नहीं।
धरती जले बरसे न घन,
सुलगे चिता झुलसे न तन।
औ ज़िंदगी में हों न ग़म।
ऐसा कभी होगा नहीं
ऐसा कभी होता नहीं।
हर नींद हो सपनों भरी,
डूबे न यौवन की तरी,
हरदम जिए हर आदमी,
उसमें न हो कोई कमी।
ऐसा कभी होगा नहीं,
ऐसा कभी होता नहीं।
सूरज सुबह आए नहीं,
औ शाम को जाए नहीं।
तट को न दे चुम्बन लहर
औ मृत्यु को मिल जाए स्वर।
ऐसा कभी होगा नहीं
ऐसा कभी होता नहीं।
दुख के बिना जीवन कटे,
सुख से किसी का मन हटे।
पर्वत गिरे टूटे न कन,
औ प्यार बिन जी जाए मन।
ऐसा कभी होगा नहीं
ऐसा कभी होता नहीं।