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दाग / अर्चना कुमारी

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चांद चाँद पर उभरते दाग परसुने होंगे...बहुत से वैज्ञानिक विश्लेषण और शोध भीबहुत सी उपमाएं उपमाएँ साहित्यकारों कीलेकिन कहा एक लड़की ने...वो गढ्ढे बने हैं मेरे आंसूओं आँसुओं सेवहां वहाँ जमा हुआ है काला नमकीन पानी
ये जो अमावस है धरती के हिस्से की
घना जंगल है ख़ामोशी का
उन चुप्पा लड़कियों की
जो रात भर बतियाती हैं चांद चाँद सेये जो चांदनी चाँदनी बरसती है...धरा के आंगन...आँगन
जल जाते हैं उगे हुए जंगल
जब गूंजता गूँजता है समवेत क्रंदन...चांद चाँद के कानों मेंएक ठहरी हुई नदी का...निकल आता है अकबका कर बाहर चांदचाँदडूब जाती है धरती...फट जाता है रंगशोकमग्न चांद चाँद कानीली चांदनी चाँदनी का उजला होना
नहीं समझेंगे लोग
नहीं समझेंगे...डूब जाने का मतलब
कि जल जाने का मतलब
सिर्फ जिस्म के दाग दाग़ नहीं होते।
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