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वितान / अर्चना कुमारी

104 bytes added, 13:31, 20 दिसम्बर 2017
|रचनाकार=अर्चना कुमारी
|अनुवादक=
|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी
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सुनने जैसी तरलताओं में
अंकन की दृश्यता का गीत है
तुम हो.........
जब कहीं छूट जाएँ शब्द
केवल इतना याद रखना
कि समवेत स्वर में कहा है
प्रेम हमने .......
तुम्हारे दीर्घ में वितान पा रहा है
मेरा ह्रस्व ......!!!</poem>
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