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"चित्र -वीथी / लावण्या शाह" के अवतरणों में अंतर

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हमने उन्हे, गले से
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घरसे भीतर जाने का
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रस्ता,
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या आता ! खडी रहती जो,
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या आता ! खडी रहती जो,<br>
 
हमेशा, वो दहलीज है!
 
हमेशा, वो दहलीज है!

23:56, 28 जून 2008 के समय का अवतरण

शाम को आने का वादा,
इस दिल को तसल्ली दे
गया,
आने का कह कर तुमने,
हमे सुकूँ कितना दिया!

अमलतास के पीले झूमर
भर गये, आँगन हमारा,
साँझ की दीप बाती
जली,
रोशन हो गया हर
किनारा !

पाँव पडे जब दहलीज पर-
हवा ने आकर, हमको
सँवारा,
आँगन से, बगिया तक,
पात पात, मुस्कुराया !

बिँदीया को सजाती
उँगलियोँ ने,
काजल नयनोँ मेँ
बिखेरा,
इत्र की शीशी से फिर
ले बूँद,
हम ने उन्हे, गले से
लगाया !

घर से भीतर जाने का
रस्ता,
लाँघ कर, जो भी है,
जाता ,
या आता ! खडी रहती जो,
हमेशा, वो दहलीज है!