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|रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र
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जिन्दगी में कोई बड़ा सुख नहीं है,
इस बात का मुझे बड़ा दु:ख नहीं है,
क्योंकि मैं छोटा आदमी हूँ,
बड़े सुख आ जाएं जाएँ घर मेंतो कोई ऎसा कमरा नहीं है जिसमें उसे टिका दूं।दूँ।
यहां यहाँ एक बात इससॆ इससे भी बड़ी दर्दनाक बात यह है कि,
बड़े सुखों को देखकर
मेरे बच्चे सहम जाते हैं,
मैंने बड़ी कोशिश की है उन्हें
सिखा दूं दूँ कि सुख कोई डरने की चीज नहीं है।
मगर नहीं
कभी एक गगरी उन्हें जमा करने के लिये लाया था
अब मैंने उन्हें फोड़ दी है।
</poem>
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