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आँखें / कविता भट्ट

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<Poem>
'''1-जिंदगी'''
 
जिस शिद्दत से देखते हो
तुम मेरा चेहरा,
काश ! जिंदगी भी
उतनी ही कशिश-भरी होती !
 
'''2-आँखें'''
 
तुम्हें विदा कहते हुए
मेरी आँखों ने एक चिट्ठी लिखी
तुम्हारी आँखों के नाम,
तुम्हारी आँखों ने पढ़ी;
लेकिन आँसुओं से
उस लिखावट को धोने के बजाय
तुम्हारी आँखों ने
समेट लिया उन सन्देशों को
और जुदाई में आँसुओं से
एक-एक अक्षर पर
लाखों ग्रन्थ लिख डाले।
 
'''3-प्रणय -निवेदन'''
 
'''जिस उम्मीद से
किसान देखता है
आकाश की ओर
उसी उम्मीद-सा है, प्रिय!
तुम्हारा प्रणय-निवेदन''' ।
 
'''4-जीवन'''
 
मिलन के आनन्द से
प्रारम्भ हुआ जीवन
माता के गर्भ में
पूरा जीवन कुछ नहीं
कभी न मिलने वाले
आनन्द की खोज के सिवाय।
 
'''5-मृगतृष्णा'''
 
प्रिय-वियोग के पतझर में-
जीवन-वृक्ष से निरंतर
पत्तों-सी झरती रही
आशा और प्रतीक्षा
प्रेम-वसंत की मृगतृष्णा में।
 
'''6-तुम्हारा स्पर्श'''
 
विरह के बाद
इतना ही सुखद है
तुम्हारा स्पर्श !
जैसे- कैदी जेल से छूटकर
वर्षों बाद अपने घर से मिला हो
या फिर कोई रोगी
लम्बी बीमारी के बाद
स्वस्थ होकर घर लौटा हो।
 
'''7-तुम आए'''
 
तुम आए स्वप्न जैसे
इससे पहले कि यकीं होता
दुनिया की हकीकत ने
नींद से जगा दिया
और मैं कभी तुम्हें खोज रही थी
कभी देख रही थी- दीवारें ।
</poem>