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काँपती रूह / ज्योत्स्ना शर्मा

1,940 bytes added, 18:08, 11 फ़रवरी 2018
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<Poem>
'''8-काँपती रूह
'''
हौले से सहला,
आ ..तुझे गोद में
प्यार से सुलाऊँ ..
बदन निष्कम्प !
काँपती रूह को
ढाँढस कैसे बँधाऊँ ?
'''9-फ़रमान
'''
लो बताओ !
ये कैसा ...
फ़रमान सुना दिया
जन्नत की चाहत में
जन्नत को...
जहन्नुम बना दिया !
 
'''10-दाग़'''
 
बड़ी चाहत से
जिसे .....
आँखों में सजाया
उसी ज़ालिम ने
गुलाबी दामन पे
दाग़ क्यों लगाया ?
 
'''11-चाहत के कंदील'''
 
तनहा थी ज़िंदगी ..
गुम थे उजाले
मैं भी बैठी रही
तेरी...
चाहत के कंदील बाले !
 
'''12-निर्मम
'''
हमारी ...
समाज की ....
पीड़ा की कोई सीमा न थी
एक दुखद ,कड़वा सत्य
अनावृत्त था ...और ...
'तमाशबीनों' के पास
चादर न थी .......
इतने निर्मम …
कैसे हो गए हम ...!!
 
'''13-करें दुआएँ !'''
 
पर्यावरण दिवस !
कुछ ऐसे मनाएँ
पेड़ लगाएँ
और फिर .....
करें दुआएँ
कि ...
उन पर लटकते
फल ही नज़र आएँ !!!
 
'''14-सड़क बोलती है'''
 
सड़क बोलती है-
जिधर चाहते हो
उधर मोड़ते हो ,
हैरत है; लेकिन
मैं जोड़ती हूँ
तुम तोड़ते हो !
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