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"काँपती रूह / ज्योत्स्ना शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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एक दुखद ,कड़वा सत्य
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'तमाशबीनों' के पास
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चादर न थी .......
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इतने निर्मम …
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कैसे हो गए हम  ...!!
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'''13-करें दुआएँ !'''
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पर्यावरण दिवस !
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कुछ ऐसे मनाएँ
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पेड़ लगाएँ
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और फिर .....
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करें दुआएँ
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कि ...
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उन पर लटकते
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फल ही नज़र आएँ !!!
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'''14-सड़क बोलती है'''
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जिधर चाहते हो
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मैं जोड़ती हूँ
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तुम तोड़ते हो !
  
 
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23:38, 11 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण

8-काँपती रूह

हौले से सहला,
आ ..तुझे गोद में
प्यार से सुलाऊँ ..
बदन निष्कम्प !
काँपती रूह को
ढाँढस कैसे बँधाऊँ ?

9-फ़रमान

लो बताओ !
ये कैसा ...
फ़रमान सुना दिया
जन्नत की चाहत में
जन्नत को...
जहन्नुम बना दिया !

10-दाग़

बड़ी चाहत से
जिसे .....
आँखों में सजाया
उसी ज़ालिम ने
गुलाबी दामन पे
दाग़ क्यों लगाया ?

11-चाहत के कंदील

तनहा थी ज़िंदगी ..
गुम थे उजाले
मैं भी बैठी रही
तेरी...
चाहत के कंदील बाले !

12-निर्मम

हमारी ...
समाज की ....
पीड़ा की कोई सीमा न थी
एक दुखद ,कड़वा सत्य
अनावृत्त था ...और ...
'तमाशबीनों' के पास
चादर न थी .......
इतने निर्मम …
कैसे हो गए हम ...!!

13-करें दुआएँ !

पर्यावरण दिवस !
कुछ ऐसे मनाएँ
पेड़ लगाएँ
और फिर .....
करें दुआएँ
कि ...
उन पर लटकते
फल ही नज़र आएँ !!!

14-सड़क बोलती है

सड़क बोलती है-
जिधर चाहते हो
उधर मोड़ते हो ,
हैरत है; लेकिन
मैं जोड़ती हूँ
तुम तोड़ते हो !