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{{KKRachna
|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी
|अनुवादक=|संग्रह=गुले-नग़मा / फ़िराक़ गोरखपुरी
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<poem>
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िन्दगी, हम दूर से पहचान लेते हैं।
बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं<br>तुझे ए ज़िन्दगी, हम दूर से पहचान लेते हैं<br><br>मेरी नजरें भी ऐसे कातिलों का काफ़िरों की जान ओ ईमान ईमाँ हैं<br>निगाहे मिलते ही जो जान और ईमान लेते हैं <br><br>हैं। जिसे कहती दुनिया कामयाबी वाय नादानीउसे किन क़ीमतों पर कामयाब इंसान लेते हैं। निगाहे-बादागूँ, यूँ तो तेरी बातों का क्या कहनातेरी हर बात लेकिन एहतियातन छान लेते हैं। तबियत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में<br>हम ऐसे में तेरी यादों के चादर तान लेते हैं<br><br> खुद अपना फ़ैसला भी इश्क में काफ़ी नहीं होता<br>उसे भी कैसे कर गुजरें जो दिल में ठान लेते हैं<br><br> हयाते-इश्क़ का इक-इक नफ़स जामे-शहादत हैवो जाने-नाज़बरदाराँ, कोई आसान लेते हैं। हमआहंगी में भी इक चासनी है इख़्तलाफ़ों कीमेरी बातें ब‍उनवाने-दिगर वो मान लेते हैं। तेरी मक़बूलियत की बज्‍हे-वाहिद तेरी रम्ज़ीयतकि उसको मानते ही कब हैं जिसको जान लेते हैं। अब इसको कुफ़्र माने या बलन्दी-ए-नज़र जानेंख़ुदा-ए-दोजहाँ को देके हम इन्सान लेते हैं। जिसे सूरत बताते हैं, पता देती है सीरत का<br>इबारत देख कर जिस तरह मानी जान लेते हैं<br><br> तुझे घाटा ना होने देंगे कारोबार --उल्फ़त में<br>हम अपने सर तेरा दोस्त हर एहसान नुक़सान लेते हैं<br> हमारी हर नजर तुझसे नयी सौगन्ध खाती है<br>तो तेरी हर नजर से हम नया पैगाम लेते हैं<br><br> रफ़ीक़-ए-ज़िन्दगी थी अब अनीस-ए-वक़्त-ए-आखिर हैतेरा ऎ मौत! हम ये दूसरा एअहसान लेते हैं ज़माना वारदात-ए-क़्ल्ब सुनने को तरसता हैइसी से तो सर आँखों पर मेरा दीवान लेते हैं 'फ़िराक ' अक्सर बदल कर भेस मिलता है कोई काफ़िर<br>कभी हम जान लेते हैं कभी पहचान लेते हैं<br><br/poem>
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