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हमारि भाशा / नरेन्द्र कठैत

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श्री नरेन्द्र कठैत जी की गढ़वाली कवितायें
 
Geetesh Negi
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11 hours agoDetails
दिवा
 
हमुन तेल देखी / अर तेलै धार
गंगा मिली त गंगा
अर जमुना मिली त
जमुना दास
 
रुंवा बिचारु
सदानि कमजोर रांद
तेल वे / जनै चांदू
वू वेकि करवट मा ऐ जांद
 
पर तेल / रुंवा तैं
पैली फुकणा चक्कर मा
अफु बि
साबुत निम्ड़ जांद
 
अर दिवा! / वा चीज च
जैकु कुछ नि जांद
वू रुंवा अर तेलै
मवासि फूकी अपड़ नौ चमकांद
 
पर सबसि बड़ी
बक्किबात त या च
कि देबी- द्यब्तौं का
नजीक बि/ दिवै बैठ्यूं रांद
 
भूख
 
घाम मा मन
काम नि कन चांद
टुप्प छैल/ बैठ जांद
 
बरखा मा
हिलू-किचू देखी
वेकि गात / झझरांद
 
ठण्ड उथगा
ठण्डी नि रांद
जथगा ऐड़ी/ वेका प्वटगा बैठ जांद
 
पर इन नि
कि वेकी जिद्यूंन्
काम /रुक जांद
 
भूख वे तैं
जब भैर खैंची लांद
त घाम-बरखा-ठण्डे/ परबा कख रै जांद.
 
 
 
 
 
मूल-निवास
 
हमारा पुरखोंन्
अंगूठा छाप होण पर्बि
हमारु जौर-बुखार
छौळ-झप्येटू
खारु घूसी-घूसी
कागज मा मंतरी
 
पर पौढ़-लेखी
कागज रगड़ी-रगड़ी बि
न हम पर
अक्ल ऐ
न हमुन् तौंकि
क्वी कीमत समझी
 
अब त बात
इख तक बढ़गि
कि हमारु असली
घर-द्वार खन्द्वार
अर मूल निवास
कागज मा चढ़गी.
 
 
 
 
बैरंग चिट्ठी
 
भैजी! तुम परदेसी!
अर मी देसी ह्वेकि बि
पाड़ी ह्वे ग्यों
 
पर मी चाणू छौं
जरा सि हथ फैलौणू
हौरि जगा मिल जौ
 
बुरु नि मण्यां !
वुन बि खन्द्वार ह्वे ग्या
तुमारु सरु घौर
 
जथगा लिपुण-घसुण मा लगौण
उथगा मा तक्खि फुण्ड
द्वी गज हौरि लै ल्या धौं !
 
बस्स! एक बार घौर ऐकि
यिं बचीं जगा-जमीन
म्यरा नौ कर जा धौं !
 
-तुमारि जग्वाळ मा
लैन्टाना
पुत्र श्री देसी खौड़ .
 
अरे भै !
 
सुणा त सै!
तुम ये पाड़ै फिकर
जमा नि करा
 
न लड़ा, न भिड़ा
न तौं धड़ौं
खड़ा करा
 
नि अब जगा
त अवा ! तै देरादून वळा
गेट बंद करा
 
अर जु !
गेटा समणा छयां
तुम पैसों वळा खड़ा
 
वू! जवा!
गैरसैणा सैंणा मा
अपड़ी हदबंदी करा
 
अरे! पाड़ त जन पैली छा
वू ! अगनै बि
वुनि रै ल्येला खड़ा
 
 
 
 
 
सबसिडी
 
धन्यवाद मोदी जी!
बिकासा दगड़ा-दगड़ि
जु तुमुन् हमारि भाशा मा
‘सबसिडी’ सब्द जड़ि
 
पर्सि तल्या खोळ बिटि
धै लगौंणि छै
हमारि अंगूठा छाप
फुलमुंड्या बडि
 
हे ब्यटा नरी!
जरा गैसा ऽ औफिस मा जैकि
पता करि
 
पिछल्या मैना भ्वरि छै गैस
पर खाता मा
अज्यूं तैं
‘सबसिडी’ नी चढ़ी !
 
 
 
स्ये जा
 
हे वीं घिंडुड़ि़
हे वे घिंडा
रुम्क प्वड़गि
अब नि च्वीं च्या
तौं छुयूंन तुमारि
कबि खतम नि होण
यिं बात तुम
लेखी ले ल्या
देखा दिनभर छौ
स्यू उल्लू उंघणू
अब स्यू तुमारि
दोब मा बैठ ग्या
अरे तुम छयां
दिनभरा थक्यां पित्यां
टप टोप मारी
निंद गाड़ा अर स्ये जा
हमारु फर्ज च
तुम तैं चिताळु कनू
बक्कि तुमारि मर्जि
जथगा चा च्वीं च्ये ल्या .
 
तुलपन
 
नीलू खोळ
जगा-जगा उधड़्यूं
काळु सफेद
अर धुवण्यां रुवां
जख-तख छटग्येणू
हे रां!
स्यू बिचारु
क्य बिछौणू
क्य ओड़णू ह्वलू
ला धौं रे!
जरा स्यूण धागू
अफार ये सरगै
यिं फटीं गदेली मा
तुरपन कर्दू .
 
द्वी रंग
 
हमुन पढ़ी-
‘जीवों पर दया करो’
पर जैका हाथ मा
स्या तख्ती छै
वू
भैंसा मत्थि चढ़यूं छौ .
 
जबारि मिन बोली-
 
जबारि मिन बोली-
कुछ पौढ़ ली, कुछ पौढ़ ली
स्यू लुकणू रै .
 
जबारि मिन बोली
कुछ कौर ली, कुछ कौर ली
स्यू घुमणू रै .
 
अब -
नौना बाळौं कि
फौज फटाक
अफू बेकार
अर मेकु ब्वनू
त्वेन कुछ नि कै .
 
चुसणा
 
ब्याळी रात द्रोणाचार्ये जिद्यूम्
एक अँगूठू कटेगि
म्यरि अंगल्यूम्
पर वेन क्य कनै म्यरु चुसणा
नौ अँगुळी सलामत छन
म्यरि घ्यूम्
मास्टर ह्वलू अपड़ि जगा
मी जब चवूं
वे नच्ये द्यूं
पिन्सना लाला पड़ जाला
सात पुस्त तैं
याद रखलू
आज एकलव्य झुकगि
पर भोळ पाइ-पाइ कु
हिसाब मंगलू
अर्जुनै धनुर्धरि
रै जालि एक किनारा
वेकु गांडिब बि सरमालू
तब न माछै आँखि दिखेलि
न त्येलै कड़ै
सरे आम थोबड़ा पर मोसू लगलू
आस आराम कै नि चऐन्दू
भीश्म तैं मी
पटै ल्योलू
कर्ण जालु कख
घूस रिस्पतौ जमानू च
वे तैं बि त रजवाड़ चऐन्दू
द्रोणाचार्य! सोच ली
पिछली दौं तू ध्वखा मा मरे छै
इबार दौं
सरेआम मरेल्यू .
 
अपड़ा संस्कार
 
हे रे वे !
लासण -प्याज!
रै-पळिंगा! हरा धण्यां!
अरे! तुम बि कक्खि
गमला वळौं कि तरौं
नौ हि नौ का
नि रै जयां.
 
फौंकि जाणि छन भैर
क्वी बात नी भुलौं!
पर या!
तौं फकत फैसनौं
नि कटौंणा रयां.
 
इन क्वी नी ब्वनू
कि तुम नि खयां
य ज्यूं मर्यां
पर या! हरेक फौंकि तक
म्वरदू-म्वरदू तक
अपड़ा संस्कार
भ्वरदि रयां.
 
हमारि भाशा
 
आखर ब्रह्म च
अर परमेसुर बि
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