भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"काँच की चूड़ियाँ / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता भट्ट |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 31: | पंक्ति 31: | ||
सीता राधा-सी काँच की चूड़ियाँ | सीता राधा-सी काँच की चूड़ियाँ | ||
अनसूया-उर्मिला काँच की चूड़ियाँ''' | अनसूया-उर्मिला काँच की चूड़ियाँ''' | ||
+ | |||
-0- | -0- | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
</poem> | </poem> |
10:59, 23 मार्च 2018 के समय का अवतरण
घोर रात में भी खनखनाती रही
पीर में भी मधुर गीत गाती रही
लाल-पीली-हरी काँच की चूड़ियाँ
आँसुओं से भरी काँच की चूड़ियाँ
उनके दाँव-पेंच में, टूटती रही
ये बिखरी नहीं, भले रूठती रही
प्यार में थी मगन काँच की चूड़ियाँ
खुश रही हैं सदा, काँच की चूड़ियाँ
माना चुभी है इनकी प्यारी चमक
ये खोजती नई रोशनी का फ़लक
नभ में छाएँगी काँच की चूड़ियाँ
इन्द्रधनुषी सजी काँच की चूड़ियाँ
कोई नाजुक इन्हें भूल कर न कहे
इनका ही रंग-रूप रगों में बहे
सीता राधा-सी काँच की चूड़ियाँ
अनसूया-उर्मिला काँच की चूड़ियाँ
-0-