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नारी / करणीदान बारहठ
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14:14, 26 मार्च 2018
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<poem>
हूं नारी
हंू
हूं
जगरी अमर जोत,
घर हो दामण सो दिवलो हूं।
अमरी स्यूं उतरी आभा हूं,
आशिष पुरोहित
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