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"किसान / ब्रजमोहन पाण्डेय 'नलिन'" के अवतरणों में अंतर

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तन के बहा पसीना हम तो धरती के तर कइली।
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ई लहलह दुपहरिया में भी पड़ निदाघ के पाला।
बालू सड़ल झरल हे मोती जिनगी में सुख पइली॥
+
जोत रहल हे खेत किसनमा पी गरमी के हाला॥
हरियर हरियर खेतन में अरमान हमर हरियायल।
+
फटल विवाई हे गोड़ा में टघरल खूब पसीना।
कँटवन में भी फूल उगल हे मनमा हे हरसायल॥
+
फिर भी जोत रहल मस्ती में तान कठिन ऊ सीना॥
ले मस्ती हम घूम रहल ही सुत्थर आरी-आरी।
+
तातल ताबा सन धरती पर पड़ल गोड़ में फोड़ा।
एसों उगल रहल धन धरती विहँसल खेत कियारी॥
+
ऊपर से सूरज बेरहमी लगा रहल कर-कोड़ा॥
दूर-दूर तक धनहर खेती में फइलल हरियाली।
+
हीरा मोती बैला ओकर बनलइ आज सहारा।
झूम रहल अब हर किसान हे देख धान के बाली॥
+
गोर बदनमा झामर भेलइ चढ़ल तपन के पारा॥
चूग रहल पंछी हे दाना ले के हरियर बाना।
+
रमरतिया ओकर मौगी ले अइलइ साथ कलेवा।
चहक-चहक खेतन में उड़ के गुन गुन गावे गाना।
+
छाँह तले बइठल ऊ खा के कहलक पयलूँ मेवा॥
उजड़ल मड़ई भी मुसकायल सजलइ घर के बाना।
+
अस्सी चास करे खातिर जे कठिन उठौलक बीड़ा।
उगल फसल के देख न कोई देतइ हमरा ताना॥
+
ओकर तनमा के नैं झाँके ताके कहियो पीड़ा॥
मुसकइलइ घरवा के कोठी घर अँगना के कोना।
+
बढ़ल चढ़ल चल धर सिरौर के कह बैला के हाँके।
हरवाही के फल मिल गेलइ भरलइ घर में सोनो॥
+
धइले लगना हाथ अरौआ ले सिरौर के झाँके॥
थिरक रहल चेहरा पर उनका बन के सुत्थर लाली।
+
काट केतारी के पाँहड़ा गुल्ला के हिगरावे।
तितली बन के कुरच रहल हे घर-घर में घरवाली॥
+
रोपे डोभे माटी भर के पानी खूब पटावे॥
 +
करमठ जे धरती पर सँउसे सरग बसावे॥
 +
फोड़ परत माटी के जब्बड़ खन जे इहाँ इनारा।
 +
ओही पावे जीवन में भी सरस सलिल के धारा॥
 +
पुजा रहल ओही ई जग में जेकर चढ़ल जुआनी।
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मर के भी जे मरे न कहिया रख ले सब के पानी॥
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जे सरबस के दान करे ऊ कहलावे दानी।
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मान रखे जे सबके बढ़ के कहलावे सनमानी॥
 
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16:52, 11 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

ई लहलह दुपहरिया में भी पड़ निदाघ के पाला।
जोत रहल हे खेत किसनमा पी गरमी के हाला॥
फटल विवाई हे गोड़ा में टघरल खूब पसीना।
फिर भी जोत रहल मस्ती में तान कठिन ऊ सीना॥
तातल ताबा सन धरती पर पड़ल गोड़ में फोड़ा।
ऊपर से सूरज बेरहमी लगा रहल कर-कोड़ा॥
हीरा मोती बैला ओकर बनलइ आज सहारा।
गोर बदनमा झामर भेलइ चढ़ल तपन के पारा॥
रमरतिया ओकर मौगी ले अइलइ साथ कलेवा।
छाँह तले बइठल ऊ खा के कहलक पयलूँ मेवा॥
अस्सी चास करे खातिर जे कठिन उठौलक बीड़ा।
ओकर तनमा के नैं झाँके ताके कहियो पीड़ा॥
बढ़ल चढ़ल चल धर सिरौर के कह बैला के हाँके।
धइले लगना हाथ अरौआ ले सिरौर के झाँके॥
काट केतारी के पाँहड़ा गुल्ला के हिगरावे।
रोपे डोभे माटी भर के पानी खूब पटावे॥
करमठ जे धरती पर सँउसे सरग बसावे॥
फोड़ परत माटी के जब्बड़ खन जे इहाँ इनारा।
ओही पावे जीवन में भी सरस सलिल के धारा॥
पुजा रहल ओही ई जग में जेकर चढ़ल जुआनी।
मर के भी जे मरे न कहिया रख ले सब के पानी॥
जे सरबस के दान करे ऊ कहलावे दानी।
मान रखे जे सबके बढ़ के कहलावे सनमानी॥