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मिली / साहिल परमार

168 bytes added, 23:40, 28 अप्रैल 2018
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तन्हाइयाँ तन्हाइयाँ तन्हाइयाँ हैंनूह् की कश्ती की तरह ज़िन्दगी मिलीयह चौदहवें अक्षर जब से सब रुस्वाइयाँ हैंसनम मुझे तुम्हारी बन्दगी मिली
कैसा बिछाया जाल तू राम ने अय मनु किजो खटखटाए हर नगर के द्वारहम ही नहीं पापी यहाँ परछाइयाँ हैंथरथराती मौत से हैरानगी मिली
हम छोड़ ना सकते ना घुल-मिल भी सके हैंघूमता कर्फ़्यू मिला है भद्र शहर मेंदोनों तरफ़ महसूस उन्हें कठिनाइयाँ हैंहालात में भद्दी पूरी शर्मिन्दगी मिली
कोई हमारी आह को सुन क्या सकेगासंसद में घुसा शेर भूखा, निकला बोल केबजतीं यहाँ चारों तरफ़ शहनाइयाँ हैंनेता के रूप में ये साली गन्दगी मिली मानिन्द मूसा की तुम्हें चलाता रहूँगादेखने की दूर तलक दीवानगी मिली
'''मूल गुजराती से अनुवाद : स्वयं साहिल परमार'''
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