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|रचनाकार=कार्ल मार्क्स
|अनुवादक=सोमदत्त
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<poem>
जेनी ! दिक करने को तुम पूछ सकती हो
जबकि कलपते हैं बस तुम्हारे लिए मेरे गीत
जबकि तुम, बस तुम्हीं, उन्हें उड़ान दे पाती हो
::जनकि जबकि हर अक्षर से फूटता हो तुम्हारा नाम
::जबकि स्वर-स्वर को देती हो माधुर्य तुम्हीं
::जबकि साँस-साँस निछावर हो अपनी देवी पर !
::मानो कोई विस्मयजनक अलौकिक सत्तानुभूति
मानो राग कोई स्वर्ण-तारों के सितार पर !
 
'''रचनाकाल : 1836'''
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : सोमदत्त'''
</poem>
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