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मुक्तक / कविता भट्ट

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|रचनाकार=कविता भट्ट
वक्त कितना भी हो मुश्किल ,खुद को बदलने नहीं देते॥
डराएँगे क्या अँधेरे अपनी बुरी निगाहों से हमें ।
फक्र फ़ख्र तारों पर है जो उजालों को ढलने नहीं देते ॥'''
2
'''बर्फीली कंच रातों में, जब लिहाफों में मचलते हो ।
मनुज बनकर दानवों की ओ वकालत करने वालों !
मेरे भरतू का बचपन, पिता का दुलार लौटा दो॥'''
4
'''सूखा खेत बरसती बदली हूँ मैं'''
आसुरी शक्तियों पर बिजली हूँ मैं ।
निकलने तो दीजिए मुझे नीड़ से
ये मत पूछना कि क्यों मचली हूँ मैं ॥
5
'''फूल -पाँखुरी भी हूँ , तितली हूँ मैं'''
उमड़े तूफ़ानों से निकली हूँ मैं ।
असीम अम्बर में लहराने तो दो
ये कभी मत कहना कि पगली हूँ मै॥
6
'''गिरी , हौसलों से सँभली हूँ मैं'''
तभी तो यहाँ तक निकली हूँ मैं ।
शिखर पर पताका फहराने दो
अभी तो बस घर से चली हूँ मैं ॥
7
'''गहन हुआ अँधियार'''
प्रियतम मन के द्वार ।
धरो प्रेम का दीप
कर दो कुछ उपकार ।
8
'''नीरव मन के द्वार'''
अँसुवन की है धार।
छू प्रेम की वीणा
झंकृत कर दो तार ॥
<poem>
'''