भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मेघकाल में / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=तारों के गीत / महेन्द्र भटनाग...)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
}}
 
}}
  
बादलों में छिप गये सब दृष्टि-सीमा तक सितारे !  
+
बादलों में छिप गए सब दृष्टि-सीमा तक सितारे !  
  
  
पंक्ति 20: पंक्ति 20:
 
:::दामिनी की चमक क्षण में,
 
:::दामिनी की चमक क्षण में,
  
:जब प्रकृति का रूप ऐसा हो गये ये दूर-न्यारे !
+
जब प्रकृति का रूप ऐसा हो गए ये दूर-न्यारे !
  
  
पंक्ति 27: पंक्ति 27:
 
::और ओले नाश वाले
 
::और ओले नाश वाले
  
::भर गये लघु-गहन नाले,
+
::भर गए लघु-गहन नाले,
  
 
:::विश्व का अंतर दहलता,
 
:::विश्व का अंतर दहलता,
पंक्ति 35: पंक्ति 35:
 
:::शीत में, पर, मौन गलता,
 
:::शीत में, पर, मौन गलता,
  
:हट गये ये उस जगह से, हो गये बिलकुल किनारे !
+
हट गए ये उस जगह से, हो गए बिलकुल किनारे !

12:11, 14 जुलाई 2008 के समय का अवतरण

बादलों में छिप गए सब दृष्टि-सीमा तक सितारे !


आज उमड़ी हैं घटाएँ,
चल रहीं निर्भय हवाएँ,
दे रहीं जीवन दुआएँ,
उड़ रहे रज-कण गगन में,
घोर गर्जन आज घन में,
दामिनी की चमक क्षण में,

जब प्रकृति का रूप ऐसा हो गए ये दूर-न्यारे !


जब बरसते मेघ काले,
और ओले नाश वाले
भर गए लघु-गहन नाले,
विश्व का अंतर दहलता,
मुक्त होने को मचलता,
शीत में, पर, मौन गलता,

हट गए ये उस जगह से, हो गए बिलकुल किनारे !