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बादलों में छिप गये गए सब दृष्टि-सीमा तक सितारे !
:::दामिनी की चमक क्षण में,
:जब प्रकृति का रूप ऐसा हो गए ये दूर-न्यारे !
::और ओले नाश वाले
::भर गये गए लघु-गहन नाले,
:::विश्व का अंतर दहलता,
:::शीत में, पर, मौन गलता,
:हट गये गए ये उस जगह से, हो गए बिलकुल किनारे !